अंधेरी रात से उजाला पाने वाला शायर मजाज़

By Gulzar Hussain

"शहर की रात और मैं नाशादो- नाकारा फिरूं"
ऐसी दिल छू लेने वाली पंक्तियां लिखने वाले मजाज़ का यह संकलन भले पुराना हो गया हो, लेकिन इसमें जो तूफान भरा है, वह मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।

लोग उनकी शायरी की तरह-तरह से तुलना करते रहे हैं। कोई उन्हें कीट्स कहता रहा है, तो कोई शराबी, लेकिन मैं तो उन्हें पढ़कर जीने की अदम्य इच्छा से भर जाता हूं।

अपनी एक नज़्म में वे अंधेरी रात का जिक्र ऐसे करते हैं, जैसे कोई जुल्मी पीठ पर ख़ंजर भोंक रहा हो, लेकिन वे निडर सीना तानकर चलेंगे।

वे लिखते हैं-
फ़ज़ा में मौत के तारीक साए थरथराते हैं
हवा के सर्द झोंके कल्ब पर ख़ंजर चलाते हैं
गुजिश्ता इशरतों के ख्वाब आईना दिखाते हैं
मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं

रात उनके लिए जुल्म का प्रतीक बनकर आता है, लेकिन रात में वे ऐसे आगे बढ़ते हैं, जैसे कोई प्रेमिका से मिलने के लिए बढ़ा जा रहा हो...

आज की रात और बाकी है
कल तो जाना ही है सफर पे मुझे...

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