हिन्दी के पहले कवि को क्यों भुला दिया जाता है?




By Gulzar Hussain

हां, यह सच है कि हिन्दी में सबसे पहले कविता लिखकर अमीर खुसरो ने हिन्दी को लोकप्रिय बनाने में अतुल्य योगदान दिया। आज हम जिस खड़ी बोली वाली हिन्दी का प्रयोग आम बोलचाल से लेकर साहित्य-फिल्म तक में करते हैं, उस भाषा में पहली बार खुसरो ही कलम चला रहे थे। दरअसल, विक्रमी 14वीं शताब्दी में सर्वप्रथम खुसरो ने खड़ी बोली (हिन्दी) का इस्तेमाल शुरू किया।

उस दौरान वे जो कविताएं लिख रहे थे, वे बेहद सरल और पठनीय होने के कारण लोगों की जुबान पर चढ़ गई थी। वे सूफियाना कवि थे, इसलिए उनकी इंसानियत से भरी पंक्तियां लोगों के मन को छू जाती थी। 

उनकी एक बानगी देखिए-

खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन
कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन

बहुत कम लोग यह जानते हैं कि 'काहे को दीनो विदेस, सुन बाबुल मोरे' जैसे आज भी लोकप्रिय रहे गीत को उन्होंने ही कलमबद्व किया था।

जब खुसरो की कविताएं हर ओर छा गई, तब गद्य में भी अन्य साहित्यकारों ने खड़ी बोली वाली हिन्दी को हाथों हाथ लिया। ...और फिर यह हिन्दी भाषा तो मुस्लिम-हिंदू सबकी बोलचाल की भाषा हो गई। हिन्दी को एक बड़े मकाम तक पहुंचाने में उनका बड़ा योगदान है।

उत्तर प्रदेश के एटा जिले में 1254 में जन्में खुसरो कवि के अलावा चर्चित संगीतकार भी थे। उन्होंने फारसी में भी खूब लिखा। उन्होंने दुनिया का पहला हिन्दी-पारसी-तुर्की-अरबी शब्दकोश 'खालिकबारी' भी लिखा।
एकता-भाईचारे के प्रबल पक्षधर रहे खुसरो की स्मृति को सलाम!
(Facebook post by Gulzar Hussain)


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