राज कपूर और नर्गिस के प्रेम-दृश्यों में बिखरा दर्द

नायिका (नर्गिस) की बेचैन आंखों में बचपन के साथी के मिल जाने से जो स्वतःस्फूर्त समर्पण का भाव उमड़ता है, वह प्रेम में पड़ी स्त्री के विद्रोह को भी दर्शाता है।
BY  Gulzar Hussain

पचास के दशक की चर्चित फिल्‍म 'आवारा' (Awaara) में राजकपूर  (Raj Kapoor) और नर्गिस  (Nargis) के प्रेम -दृश्य जितने सुहाने लगते हैं, उससे अधिक उन दृश्यों में कोई दुःख पसरा प्रतीत होता है। इनके प्रेम-दृश्यों में आप कई बार एक चुभता सा दर्द महसूस कर सकते हैं।

 Awaara का एक दृश्‍य/ साभार File photo

एक घुटन सा या कोई अपराध बोध वहां रोमांटिक दृश्यों पर हावी होता सा प्रतीत होता है। राजकपूर की फीकी और रहस्यमयी मुस्कान उसके बचपन की तकलीफों को सामने लाती है। दूसरी ओर नायिका (नर्गिस) की समर्पित मुस्कान और आनंदातिरेक में डूबती आंखों में एक मंजिल पा जाने की झलक मिलती है। नर्गिस की बेचैन आंखों में बचपन के साथी के मिल जाने से जो स्वतःस्फूर्त समर्पण का भाव उमड़ता है, वह प्रेम में पड़ी स्त्री के विद्रोह को भी दर्शाता है।

वह अपने चेहरे को दोनों हथेलियों से ढक लेता है और धीरे -धीरे हथेलियों को खिसका कर उसकी ओर तिरछी नजरों से देखता है। यह क्षण प्रेम के साथ एक ऐंद्रिक-अपराध बोध को सामने लाता है। इस दृश्य का चरम वह है जब दौड़ती हुई नर्गिस को राज कपूर पकड़ लेता है। नर्गिस उसे जंगली कहती है... 
'आवारा' के उस दृश्य को याद कीजिए, जब नायिका (नर्गिस) नहाने के बाद एक पर्दे की आड़ में कपड़े बदलती है और नायक (राज कपूर) को वहां आने से मना करती है। वह अपने चेहरे को दोनों हथेलियों से ढक लेता है और धीरे -धीरे हथेलियों को खिसका कर उसकी ओर तिरछी नजरों से देखता है। यह क्षण प्रेम के साथ एक ऐंद्रिक-अपराध बोध को सामने लाता है। इस दृश्य का चरम वह है जब दौड़ती हुई नर्गिस को राज कपूर पकड़ लेता है। नर्गिस उसे जंगली कहती है और वह उसे कई थप्पड़ जड़ देता है।
एक पल में नायक प्रेमी से हिंसक मर्द में बदल जाता है। लेकिन अगले ही पल  नायिका (नर्गिस) घुटनों के बल बैठ कर आंखें बंद किए चेहरा उसकी ओर उठा देती है और कहती है, "लो मारो.."
इस क्षण में नायिका एक पुरुष के अंहकार को चुनौती दे देती है। राज कपूर अपने कष्टप्रद बचपन (फिल्म की कहानी में) से इसे जोड़ता है और एक पल में प्रेमी से हिंसक मर्द में बदल जाता है। लेकिन अगले ही पल  नायिका (नर्गिस) घुटनों के बल बैठ कर आंखें बंद किए चेहरा उसकी ओर उठा देती है और कहती है, "लो मारो.."

यह एक प्रेमिका के विश्वास और स्नेह की सबसे जटिल स्थिति है। मानो वह कहती है कि तुम हिंसक पुरुष बन गए लेकिन मैं फिर भी प्रेमिका ही रही। प्रेमिका का यह मौन समर्पण स्त्री के विरोध की नींव भी है और चेतावनी भी। वहां एक प्रेमिका इसलिए ठहरी है कि उसका प्रेमी उसकी ओर झुका हुआ उसका ही एक अंश हुआ चाहता है।

                                                                                      

Comments

  1. खैर यहां अगर कुछ लिखा गया तो शायद गलत लगे,ये लि वाला पुरुष है और

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