इंसानियत का परचम लहराते 'दोस्‍ती' के गाने

फिल्म 'दोस्ती' के लिए मजरूह सुल्‍तानपुरी के लिखे इस गाने में जितना दर्द छलकता दिखाई देता है, उतना ही मानवीय प्रेम का ऐलान भी सुनाई पड़ता है। यह गाना इंसान को इंसान के प्रति हमदर्दी रखने का पहला सबक याद दिलाता है। पहली पंक्ति में ही गीतकार कहता है कि 'मैं तुम्‍हारी तरह एक इंसान हूं।' 
BY  Gulzar Hussain

"जाने वालों जरा मुड़ के देखो मुझे, एक इंसान हूं, मैं तुम्हारी तरह..."

यह केवल फिल्मी गाना नहीं है, बल्कि मजरूह की कलम से उतरी वह हकीकत है, जिसे सदियों से इंसान अपने मन में बसाए है। दरअसल 'मैं भी इंसान हूं' कहना उन कट्टरपंथी समूहों के लिए एक जवाब भी है जो इंसान को इंसान मानने से इनकार करते रहे हैं। वर्तमान में जब दुनियाभर के ताकतवर-कट्टर समूह इंसान को जानवरों से भी कमतर आंक रहे हैं , तब इस गाने का महत्व उभर कर सामने आता है।
'दोस्ती' फिल्म गाने का यादगार दृश्य

फिल्म 'दोस्ती' के लिए  मजरूह सुल्‍तानपुरी के लिखे इस गाने में जितना दर्द छलकता दिखाई देता है, उतना ही मानवीय प्रेम का ऐलान भी सुनाई पड़ता है। यह गाना इंसान को इंसान के प्रति हमदर्दी रखने का पहला सबक याद दिलाता है। पहली पंक्ति में ही गीतकार कहता है कि 'मैं तुम्‍हारी तरह एक इंसान हूं'। इससे यह स्‍पष्‍ट होता है कि गीतकार इस बेदर्द दुनिया को याद दिलाना चाहता है कि जिसकी तुम उपेक्षा किए चले जा रहे हो, वह भी तुम्‍हारी तरह एक इंसान ही है। वैसे तो मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) के बहुत सारे गाने सीधे मन में उतरते हैं, लेकिन 1964 में बनी सत्येन बोस निर्देशित फ़िल्म 'दोस्ती' के गाने की बात ही कुछ और है।

सच, मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे गाने रफी ने इस तरह से गाए हैं कि जिसे सुनकर लोगों के कदम ठहर जाएं। 'मेरे पास आओ छोड़ो ये सारा भरम, जो मेरा दुख वही है तुम्हारा भी गम' कहते हुए रफी की आवाज में जो दर्द उभरता है, उसे शब्दों में बयान करना कठिन है। रफी मानों सदियों से उपेक्षित वंचित जनता का दुख अपने अंदर समेट लाए हों। आजकल हिंदी फिल्‍मों में इस तरह के इंसानियत और प्‍यार से भरे मधुर गाने बहुत कम बनते हैं, जिससे लगता है कि गीतकारों की पसंद अब कितनी बदल गई है।
सुरीली आवाज का जादू बिखेरते रफी साहब 

नई पीढ़ी को भी फिल्‍म 'दोस्‍ती' के गाने खूब पसंद हैं। तभी तो आज भी जब किसी एफएम चैनल पर इस फिल्‍म के सुरीले गाने बजते हैं, तो युवा उसके संग झूम उठते हैं। डिजिटल मार्केटिंग से जुड़े नितेश मिश्रा कहते हैं, ''जब कहीं 'दोस्‍ती' फिल्‍म का गाना 'जाने वालों जरा...' सुनता हूं, तो ऐसा लगता है कि पूरी दुनिया को इस गाने की पंक्ति पर चल के दिखाना चाहिए। हर इंसान के सम्‍मान और प्रेम के महत्‍व को दर्शाता यह एक जरूरी गाना है।''   

इसके अलावा इस फिल्‍म के अन्‍य गाने 'राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है' और 'कोई जब राह न पाए, मेरे संग आए' गाते हुए रफी की आवाज जितनी उठती हुई गूंजती है, उतनी ही अकेलेपन के दर्द को समेटे प्रतीत होती है। 'दोस्ती' के गाने गाते हुए रफी अपनी गायन कला के चरम पर हैं। ठीक उसी तरह जैसे 'दोस्ती' में अभिनेता सुधीर और सुशील अभिनय के चरम पर हैं। समय मिले तो ये गाने फिर से जरूर सुनिए।



Comments

  1. आपने 'दोस्ती' के इस गीत के बहाने इंसानियत की जो व्याख्या की है, वो अद्भुत है। शानदार लेख है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया sir...
      मजरूह के इस गाने की सबसे बड़ी खूबी मानवीय प्रेम की जरूरत पर बल दिया जाना ही है। इस गाने को सुनकर कदम ठहर जाते हैं।

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

बदलता मौसम : लघुकथा

सत्य की खोज करती हैं पंकज चौधरी की कविताएं : गुलज़ार हुसैन

प्रेमचंद के साहित्य में कैसे हैं गाँव -देहात ?