क्या बलात्कार के खिलाफ प्रतीक बन पाएंगी नादिया?
आईएस (ISIS terrorists) के खौफनाक शिकंजे में कई महीनों तक यातना झेलने वाली यजीदी महिला कार्यकर्ता नादिया मुराद को इस साल नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है। यह पुरस्कार खास इसलिए है कि नादिया न केवल बलात्कार के खिलाफ लगातार आवाज उठाती रही हैं, बल्कि उन्होंने खुद स्त्री विरोधी अत्याचार की हद को झेला भी है। इसलिए यह उम्मीद बंधती हैं वह और मुखर होकर रेप के खिलाफ आवाज बुलंद कर पाएंगी। वे तीन महीने तक आईएस के क्रूर आतंकियों के भीषण जुल्म का शिकार हो चुकी हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक ठोस आवाज बनकर उभरी। गौरतलब है कि 2014 में आईएस के क्रूर आतंकियों ने बंधक बनाकर उनका रेप किया था।
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Nadia: From Slave To Nobel Laureate/ Drawing: Gulzar Hussain |
जागरूकता फैलाई
नादिया ने बलात्कार और अन्य यौन अपराधों (sexual violence) के खिलाफ लोगों में बहुत जागरूकता फैलाई है। आज जब पूरे विश्व में स्त्री अपराधों के खिलाफ एक चुप्पी का माहौल दिखाई दे रहा है, तब नादिया का प्रतिरोध बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। वे अपनी आपबीती सुनाकर पूरी दुनिया को जागरूक करने की इच्छा रखती हैं।
दुनियाभर में यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को समर्पित
नादिया ने अपना नोबेल पुरस्कार यौन अपराध की शिकार हर महिला को समर्पित किया है। उन्होंने लिखा है, ''मैं यह पुरस्कार यजीदी, इराकी, कुर्द, अन्य पीड़ित अल्पसंख्यों तथा दुनियाभर में यौन उत्पीड़न का शिकार अनगिनत लोगों को समर्पित करना चाहूंगी।''
भीषण जुल्म झेले, पर नहीं हारी हिम्मत
नादिया के भाइयों सहित उनकी मां का कत्ल आईएस के आतंकियों ने कर दिया, लेकिन इसके बावजूद वे नहीं टूटी। इस दौरान आईएस के आतंकी उनके साथ लगातार बलात्कार कर रहे थे। उन्होंने बताया कि एक मोटा आतंकी लड़ाका उन्हें ले गया और लाख विनती करने पर भी नहीं माना। इसके बाद जब उन्होंने भागने की कोशिश की तो उन्हें सजा देने के तौर पर छह सुरक्षा गार्डों से उनका रेप करवाया गया। एक दिन जब वो अकेली थी, तब वहां से भाग निकली। वे मोसुल की गलियों में भटक रही थी, तब एक मुस्लिम परिवार ने उनकी आपबीती सुनी और कुर्दिस्तान की सीमा तक पहुंचने में मदद की।
नई पीढ़ी की आवाज
नादिया नई पीढ़ी की आवाज बन रही हैं, लेकिन क्या भारत में उन्हें रेप के खिलाफ एक प्रतीक के रूप में अपनाया जाएगा? इस मुद्दे पर विचार करने की जरूरत है। गौरतलब है कि भारत में सामूहिक बलात्कार कांड के खिलाफ मजबूत आवाज बनकर उभरी फूलन देवी को आज तक बलात्कार के खिलाफ प्रतीक के रूप में नहीं अपनाया जा सका है। काश फूलन देवी को प्रतीक के रूप में नई पीढ़ी अपना पाती, तो आज नादिया को भी प्रतीक के रूप में अपनाने की एक बड़ी पहल हो पाती। अब भी समय नहीं बीता है। भारत के लोग फूलन देवी और नादिया जैसी महिलाओं को अपना आदर्श मानकर, रेप के बढ़ते मामलों के खिलाफ एक लड़ाई शुरू करें।
(Note: Murad and Congolese doctor Denis Mukwege were jointly awarded the Nobel prize.)
-गुलज़ार हुसैन
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