TIPU SULTAN अंग्रेजी साम्राज्यवाद से लोहा लेने वाले शासक थे, क्या कहते हैं इतिहासकार- पत्रकार?
सोशल मीडिया पर जमकर टीपू सुल्तान के मुद्दे पर चर्चा हो रही है। इतिहासकारों, लेखकों- पत्रकारों ने खुलकर टीपू की महानता और उल्लेखनीय कार्यों पर कलम चलाई है।BY Gulzar Hussain
मैसूर राज्य के शासक टीपू सुल्तान (TIPU SULTAN) (1750-1799) को इतिहास अंग्रेजी साम्राज्यवाद से लोहा लेने वाला महान शासक कहता है, तो वहीं दूसरी तरफ आरएसएस- भाजपा वाले उसे धर्मांध बताते नहीं थकते। कर्नाटक सरकार टीपू सुल्तान की जयंती पर वर्षों से कार्यक्रम आयोजित करती आई है, लेकिन भाजपा इसका पुरजोर विरोध करती रही है। गौरतलब है कि इस साल टीपू की जयंती पर भी भाजपा वालों ने विरोध तो किया, लेकिन यह बहुत ही ठंडा विरोध रहा। उनके विरोध के ठंडा पड़ने के पीछे जो भी कारण रहे हों, लेकिन सोशल मीडिया पर तो जमकर टीपू के मुद्दे पर चर्चा हो रही है। लेखकों- पत्रकारों ने खुलकर टीपू की महानता और उल्लेखनीय कार्यों की चर्चा की है।
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File photo |
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल (Dilip C Mandal) ने अपने फेसबुक पोस्ट में टीपू की वीरता का उल्लेख किया है। वे इसे हिंदू-मुसलमान का मामला नहीं मानते हैं। वे लिखते हैं- ''जब टीपू सुल्तान अंग्रेजों से लड़ रहे थे, तब ब्राह्मण पेशवा, तंजौर और त्रावणकोर के हिंदू राजा और निजाम अंग्रेजों के जूते चाट रहे थे! अनपढ़ संघियों को कोई बताए कि टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों, ब्राह्मण पेशवा और निजाम तीनों की संयुक्त फौज का मुकाबला किया था। मामला हिंदू-मुसलमान का था ही नहीं। देशभक्ति और गद्दारी का था। ब्राह्मण पेशवा और निजाम गद्दार थे. टीपू ईमान का पक्का देशभक्त था।
जिस ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी नहीं डूबता था, उसके सरकारी आर्मी म्यूज़ियम ने एक लिस्ट बनाई है, उन विरोधी सेनापतियों की, जो ब्रिटिश साम्राज्य के लिए सबसे बडा ख़तरा बने। इस लिस्ट में टीपू सुल्तान शामिल हैं। इस लिस्ट में नेपोलियन और जॉर्ज वाशिंगटन भी हैं। भारत से सिर्फ दो नाम हैं। दूसरा नाम झाँसी की रानी का है।
संघी लोग हनुमान चालीसा के अलावा कुछ पढ़ते नहीं है, वरना मैं उन्हें ब्रिटिश आर्मी म्यूज़ियम से संबंधित खबर का लिंक पढने को कहता।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि जब टीपू अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में जुटा था, तब पेशवा, तंजौर के राजा और त्रावणकोर नरेश ब्रिटिश के साथ संधि कर चुके थे। टीपू इन राजाओं के खिलाफ भी लड़ा। अब इसका क्या किया जा सकता है कि ये राजा हिंदू थे।
टीपू हैदराबाद के निज़ाम के खिलाफ भी लड़ा जो मुसलमान था। स्कूल की किताबों में तीसरा मैसूर युद्ध देखिए। इसमें टीपू के खिलाफ अंग्रेजों, पेशवा और निज़ाम की संयुक्त फ़ौज लड़ी थी।यह हिंदू बनाम मुसलमान का मामला ही नहीं है। शर्म की बात है कि संघियों की बेवक़ूफ़ियों की वजह से वह शानदार विरासत आज विवादों में है।''
जिस ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी नहीं डूबता था, उसके सरकारी आर्मी म्यूज़ियम ने एक लिस्ट बनाई है, उन विरोधी सेनापतियों की, जो ब्रिटिश साम्राज्य के लिए सबसे बडा ख़तरा बने। इस लिस्ट में टीपू सुल्तान शामिल हैं। इस लिस्ट में नेपोलियन और जॉर्ज वाशिंगटन भी हैं। भारत से सिर्फ दो नाम हैं। दूसरा नाम झाँसी की रानी का है। -दिलीप मंडल
इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा है कि टीपू सुल्तान (TIPU SULTAN) को तानाशाह कहना गलत है। उन्होंने कहा कि टीपू निस्संदेह ब्रिटिश शासन का प्रतिरोध करने वालों में एक महत्वपूर्ण चेहरा थे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उन पर स्वतंत्रता सेनानी जैसी बात लागू नहीं होती है, क्योंकि उन्होंने किसी के खिलाफ विद्रोह नहीं किया, बल्कि अपने राज के बचाव और उपनिवेशवाद के प्रतिरोध के लिए संघर्ष किया।
गौरतलब है कि इरफान टीपू पर दो किताबें 'स्टेट एंड डिप्लोमैसी अंडर टीपू सुल्तान: डॉक्युमेन्ट्स एंड एसेज' और 'कन्फ्रन्टिंग कोलोनियल: रजिस्टेंस ऐंडड मॉडर्नाइजेशन अंडर हैदर अली ऐंड टीपू सुल्तान' को संपादित कर चुके हैं। इरफान ने टीपू को बलात्कारी और क्रूर हत्यारा कहे जाने का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि उनके चरित्र पर इस तरह का हमला कभी ब्रिटिश शासन के दौरान भी नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि टीपू ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ केवल युद्ध ही नहीं की, बल्कि एक ताकतवर जनरल के रूप में ब्रिटिश सशस्त्र बलों पर सबसे बड़ी विपदाओं के रूप में उभरे। उन्होंने टीपू की तारीफ करते हुए कहा कि आधुनिक सेना बनाने, आधुनिक हथियारों का निर्माण करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में टीपू का उल्लेखनीय योगदान है।
टीपू के चरित्र पर इस तरह का हमला कभी ब्रिटिश शासन के दौरान भी नहीं किया गया। टीपू ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ केवल युद्ध ही नहीं की, बल्कि एक ताकतवर जनरल के रूप में ब्रिटिश सशस्त्र बलों पर सबसे बड़ी विपदाओं के रूप में उभरे। -इरफान हबीब
इतिहासकार टीसी गौड़ा ने एक पत्रकार को बताया है कि टीपू के सांप्रदायिक होने की कहानी झूठी और गढ़ी गई है। टीपू ने तो श्रिंगेरी, मेल्कोटे, नांजनगुंड, सिरीरंगापटनम, कोलूर, मोकंबिका के मंदिरों को ज़ेवरात दिए और सुरक्षा मुहैया करवाई थी। ये सभी कुछ सरकारी दस्तावेज़ों में अभी भी मौजूद हैं।
इसके अलावा दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज के इतिहास विभाग के प्रमुख रोहित वानचू ने कहा कि दक्षिण भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवादी विस्तार को रोकने में टीपू (TIPU SULTAN) का महत्वपूर्ण योगदान था। टीपू ने ब्रिटिश शासन के कदम पर ब्रेक लगा दिए।
दक्षिण भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवादी विस्तार को रोकने में टीपू का महत्वपूर्ण योगदान था। -रोहित वानचूजेएनयू में सेंटर फॉर हिस्टॉरिकल स्टडीज की सहायक प्रफेसर नोनिका दत्त ने भी टीपू को अंग्रेजों का पुराना दुश्मन बताया है। दत्त ने कहा कि टीपू सुल्तान अपने समय के राष्ट्रवादी नायक नहीं थे तो तानाशाह भी कतई नहीं थे।
दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज के इतिहास के सह प्रफेसर तसनीम सुहरावर्दी ने टीपू को दक्षिण भारत में ब्रिटिश विस्तार को रोकने वाला महत्वपूर्ण शासक कहा है। उन्होंने कहा कि टीपू साहसी योद्धा थे।
टीपू पर ऐसा बहुत कुछ लिखा जा रहा है, जो उन्हें प्रामाणिक और ऐतिहासिक रूप से एक साहसी शासक के रूप में प्रस्तुत करता है, जिन्होंने अकेले शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य से लोहा लिया। दूसरी ओर दक्षिणपंथी और भाजपाई उन्हें जिन तथ्यों के आधार पर धर्मांध शासक बता रहे हैं, वे तथ्य अप्रामाणिक और कमजोर हैं।
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