OH MUMBAI: फुटपाथ के फरिश्तों की कठिन राहें
मुंबई (Mumbai)की आलीशान इमारतों और चमकती सड़कों के पीछे मजदूरों की कड़ी मेहनत होती है, लेकिन उन्हें इतनी पगार नहीं मिलती कि वे घर ले सकें। आखिरकार उन्हें फुटपाथ पर सोना पड़ता है। मुंबई की सड़कों पर देर रात राइस प्लेट खाकर मजदूरों को आप वहीं कुछ बिछाकर सोते हुए देख सकते हैं। थके हारे मजदूर फुटपाथ पर सोकर कुछ पैसा बचा लेते हैं, जिससे वे अपने गांव में रहने वाले बीवी-बच्चों का पेट पालते हैं।
BY GULZAR HUSSAIN
देश-दुनिया के लोग जितना मुंबई की चमक-दमक भरी जिंदगी के बारे में जानते हैं, उतना मुंबई के फुटपाथ पर रहने वाले लोगों के बारे में नहीं जानते हैं। यह सच (Reality) है कि इस महानगर के फुटपाथों की गोद से निकलकर कई लोग चमकते सितारे बन गए और कई लोग वक्त के अंधेरे में खो गए, लेकिन इसके बावजूद सभी को फुटपाथ ने एक तरह मौका दिया। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि यहां के फुटपाथों ने उन लोगों को आसरा दिया, जिन्होंने मुंबई को अपने हाथों से संवारा है।
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Photo by Gulzar Hussain |
बेघर लोगों का ठिकाना
दूर-दराज से मुंबई महानगर काम करने के लिए आने वाले गरीब लोगों को बहुत आसानी से घर नहीं मिलता है, ऐसे में फुटपाथ ही उनका ठिकाना बनता है। कई तरह के काम करने वालों को फुटपाथ ही संबल देता है और उन्हें काम करने के लिए प्रेरित करता है। यहां रहकर ही लोग तरह-तरह के काम-धंधे से जुड़ना और जीवन में संकट का सामना करना सीखते हैं। कई लोग यहां रह कर ही छोटे-छोटे काम करने लगते हैं और धीरे-धीरे अपनी स्थिति को बदलते हैं।
रोजगार करने का मौका
मुंबई का फुटपाथ गरीबों को कई तरह के रोजगार करने के अवसर देता है। लोग यहां चाय से लेकर चॉकलेट तक बेचकर अपना पेट भर लेते हैं। फुटपाथों का इस्तेमाल मूल रूप से गरीब फेरीवालों के छोटे-छोटे धंधे चलाने के लिए ही होता है। मुंबई में अधिकांश फुटपाथ पर कई तरह की चीजें बेचने वाले अक्सर अपना सामान बेचकर वहीं सो जाते हैं। फुटपाथ पर ही ऐसे निर्धन फेरीवालों के दिन भी गुजरते हैं और रातें भी।
मजदूरों की शरणस्थली
मुंबई की आलीशान इमारतों और चमकती सड़कों के पीछे मेहनतकश मजदूरों की कड़ी मेहनत होती है, लेकिन उन्हें इतनी पगार नहीं मिलती कि वे घर ले सकें। आखिरकार उन्हें फुटपाथ पर सोना पड़ता है। मुंबई की सड़कों पर देर रात राइस प्लेट खाकर मजदूरों को आप वहीं कुछ बिछाकर सोते हुए देख सकते हैं। थके हारे मजदूर फुटपाथ पर सोकर कुछ पैसा बचा लेते हैं, जिससे वे अपने गांव में रहने वाले बीवी-बच्चों का पेट पालते हैं।
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दुर्घटनाओं का बना रहता है खतरा
फुटपाथ लोगों का आसरा तो देता है, लेकिन यह कभी-कभी गरीबों की मौत की सबसे आसान राह भी बन जाता है। मुंबई में कई ऐसी घटनाएं सामने अक्सर सामने आती रहती हैं, जिनमें रईसजादे नशे में फुटपाथ पर सो रहे मजदूरों पर कार चढ़ा देते हैं। यह फुटपाथों पर सोने का सबसे बुरा पहलू है, जिसमें गरीब लोगों की जान चली जाती है। मजदूरों को फुटपाथ पर सोने का सबसे अधिक भय इसी से सताता है। रात में फुटपाथ पर सो रहे गरीबों पर कार चढ़ाने को लेकर कई छोटे-बड़े फिल्म-टीवी स्टारों के नाम सामने आते रहे हैं।
बच्चों के सपने पलते हैं यहां
फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों को सबसे अधिक कष्ट सहना होता है। यहां रहने वाले बच्चे अक्सर बाल मजदूर होते हैं। इन्हें या तो सड़कों पर घूम-घूम कर फूल या किताबें बेचनी पड़ती हैं या फिर फुटपाथ पर ही किसी ठेले के काम पर ये लग जाते हैं। बच्चों की दुख भरी जिंदगी के बावजूद उनके सपने बहुत अधिक सघन होते हैं। फुटपाथ की जिंदगी में पलने वाले बच्चे मुंबई (Mumbai) महानगर की चमक-दमक की जिंदगी को बहुत करीब से देखते हैं। बच्चे अपनी आंखों के सामने रईसजादों को भी बड़ा होते हुए देखते हैं और उनकी फिजूलखर्ची को लेकर एक ग्रंथी भी उनके मन में विकसित होती है। कई बच्चे इस चमक-दमक भरी जिंदगी को देखकर अमीर बनने का सपना पाल लेते हैं।
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आंखों के सामने अपराध
फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे अपनी आंखों के सामने क्राइम को पनपते और होते देखते हैं। रात और दिन के उजालों में होने वाले अपराध को देखकर फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के मन में बहुत गहरा असर होता है। कई बच्चे ऐसे क्राइम से घबराते हैं, तो कई बच्चों के कोमल मन पर ऐसी आपराधिक घटनाएं बार-बार देखने से बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। कई बच्चे मुंबई की चकाचौंध के तले होते अपराध की चपेट में आ जाते हैं और उसी राह पर बढ़ने निकल पड़ते हैं।
शिक्षा बहुत जरूरी
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फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है, लेकिन यहां रहने वाले अनाथ और गरीब बच्चों को शिक्षा मिले भी तो कैसे? कई माता-पिता इतने गरीब होते हैं कि उनके लिए पेट भरना ही बहुत मुश्किल होता है, ऐसे में वे शिक्षा कैसे और कहां दें। मुंबई में कई संस्थाएं और समाजसेवियों ने समय-समय पर फुटपाथ पर सामान बेचने वाले लोगों के बच्चों को पढ़ाने सराहनीय काम किया है। हाल ही में एक संस्था की ओर से स्ट्रीट चिल्ड्रेन को पढ़ाने का काम करने की खबर सामने आई है। लेकिन इन सबके बावजूद फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों की स्थिति सुधारने के लिए सरकारी प्रयास बहुत कम किए गए हैं। बच्चे यदि देश का भविष्य हैं, तो इनकी शिक्षा भी तो हर राजनीतिक पार्टी के एजेंडे में प्रमुखता से होना चाहिए।
बीमार होता बचपन
फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। पौष्टिक आहार और सफाई पर ध्यान नहीं दिए जाने के कारण बच्चों को कई तरह की बीमारियां घेर लेती हैं। कई बार फुटपाथ पर सोने वाले बच्चे मच्छरों और अन्य जन्तुओें के कारण गंभीर बीमारियों के शिकार होकर अपनी जान तक गंवा बैठते हैं। वहीं इनमें कुपोषण के मामले भी बहुत अधिक होते हैं। वजन कम होना और अत्यधिक दुर्बल होने के कारण इनका जीवन कई तरह के कष्टों से घिर जाता है। गरीब बच्चों के लिए सरकार समय्-समय पर कई योजनाएं बनाती हैं। कुपोषण को लेकर भी कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम किए जाते हैं, लेकिन इन सबका परिणाम उल्लेखनीय नहीं मिलता हैं।
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ह्युमन ट्रैफिकिंग के चंगुल में मासूम
फुटपाथ पर सोने वाले बच्चों की जिंदगी में एक और बड़ा खतरा ह्युमन ट्रैफिकिंग का होता है। इसके जरिए बच्चों को खरीद-फरोख्त के माध्यम से देह व्यापार और अन्य धंधों में धकेला जाता है। कई गिरोह तो ऐसे होते हैं,जो बच्चों को विदेशों में बेच देते हैं। इसके अलावा इन बच्चों को कई तरह के अपराध में शामिल किया जाता है। ह्युमन ट्रैफिकिंग का मूल उद्देश्य छोटी उम्र की लड़कियों को देह व्यापार के दलदल में धकेलना ही होता है। नाबालिग बच्चों के यौन शोषण के बढ़ते आपराधिक प्रचलन को देखते हुए एक बड़ा बाजार गुप्त रूप से तैयार होता है,जो मजबूर मासूमों की सप्लाई करता है।
भीख मंगवाने वाले गिरोह की नजर
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फिल्मों में छाई फुटपाथों की रूखी दुनिया
बॉलीवुड के अलावा हॉलीवुड की फिल्मों में भी मुंबई के फुटपाथ की रूखी दुनिया के नजारे देखने को मिलते रहे हैं। कई हिंदी फिल्में तो फुटपाथ के नाम से और इसके अलावा फुटपाथ से जुड़े गरीब लोगोें की जिंदगी पर बन चुकी है। हिंदी फिल्मों पर मुंबई के फुटपाथ का बहुत अधिक प्रभाव रहा है। माना जाता है कि 70 के दशक में अमिताभ बच्चन की फिल्मों का जादू लोगों के सर चढ़कर इसलिए बोला कि उन्हें फुटपाथ से उठे एंग्री यंग मैन के रूप में दिखाया जाने लगा। इसके अलावा कई फिल्मी गानों में फुटपाथ और सड़क पर रहने वालों का वर्णन मिलता है। महेश भट्ट की फिल्म ‘सड़क’ में संजय दत्त पर फिल्माया वह गाना तो सबको याद होगा, जिसमें नायक कहता है- ‘रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं, अपना खुदा है रखवाला। ’
साहित्य में संघर्ष भरा जीवन
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सड़क से चमकते स्टारडम तक का सफर
मुंबई की फिल्मी दुनिया में अभिनेता बनने आए स्टारों की सैंकड़ों कहानियां ऐसी हैं, जिसमें वे शुरुआती दिनों में फुटपाथ पर रहने को मजबूर हुए। सुनील दत्त, धर्मेंद्र से लेकर मिथुन चक्रवर्ती तक कई अभिनेताओं ने अपनी शुरुआती जिंदगी में फुटपाथ को अपना आशियाना बनाया है। कई कहानियां ऐसी हैं, जिनमें युवक घर छोड़कर मुंबई आता है और फुटपाथ पर रहकर फिँल्मों में रोल पाने के लिए संघर्ष करता है। फिर एक दिन वही युवक चमकता-दमकता स्टार बन जाता है। लेकिन लाख टके का सवाल तो यह है कि इन फुटपाथों से उठकर स्टार बनने के बाद क्या वह शख्स फुटपाथ पर रहने वालों को भूल जाता है?
(This Week's Top Stories... )
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बिल्कुल यही सच है कि एक ऊंचाई पर जा कर शायद लोग इसे तो जीवन के किए गए संघर्षों का अपना इतिहास दर्ज कराने के लिए बताने तक ही सिमित रहते हैं उस के बाद वो उस फुटपाथ और वहां के जीते जागते लोगों के दुखों को भूल जाते हैं उन के जीवन के लिए कोई अच्छे कदम उठाए ऐसे न के बराबर है अगर ऐसा नहीं होता तो हमारे देश की तस्वीर ही अलग होती ये महानगरों ही नहीं बल्कि हर शहर और गांव का भी हाल है।
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