2 Years of Demonetisation : नोटबंदी से इस पत्रकार की माँ ने गंवाई थी जान

By Gulzar Hussain
''...वह बीमार थी और अस्पताल आना-जाना लगा था। हमने उस दौरान नोटबंदी की त्रासदी झेली और दूसरों के भीषण दुख देखे। हम एक-एक पैसे के लिए मोहताज थे। हम अपने पैसे को पाने के लिए तड़प रहे थे। मैं इसे न कभी भूलूंगी न ही इस संकट के लिए माफ करूंगी।''

दो साल पहले आज ही के दिन (8 नवंबर, 2016 को) जो कुछ हुआ वह भारतवासी के लिए किसी सदमे से कम नहीं था। उस  शाम को कोई लाख चाहने पर भी नहीं भुला सकता। उस शाम 8 बजे नोटबंदी की घोषणा हुई और देश भर में अफरा-तफरी का माहौल हो गया। नोटबंदी के कारण देश की ज्‍यादातर जरूरतमंंद जनता काे एटीएम की लंबी- लंबी लाइन में लगना पड़ा और लगभग 150 से अधिक लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। इनमें एक महिला पत्रकार भी थी जिन्‍हें अपनी माँ  की मौत का दुख झेलना पड़ा।
Photo: Gulzar Hussain

हां, नोटबंदी से वरिष्ठ पत्रकार रंजना बनर्जी की माँ की मौत हो गई थी। उन्होंने  30 अगस्‍त, 2018 को ट्विटर पर यह लिखा- 
"मेरी माँ की मौत 8 जनवरी 2017 को हुई। नोटबंदी ने हमारी ज़िंदगी को नरक बना दिया था। वह बीमार थी और अस्पताल आना-जाना लगा था। हमने उस दौरान नोटबंदी की त्रासदी झेली और दूसरों के भीषण दुख देखे। हम एक-एक पैसे के लिए मोहताज थे। हम अपने पैसे को पाने के लिए तड़प रहे थे। मैं इसे न कभी भूलूंगी न ही इस संकट के लिए माफ करूंगी।''

रंजना ने जो पीड़ा झेली या देखी वह अधिकांश देश्‍ावासी झेल रहे थे। यह हमारे देशवासियों के लिए साझा दुख की घड़ी थी। कोई इलाज के लिए जूझ रहा था, तो कोई अपने रोजी-रोटी में घाटे से परेशान था। आखिरकार नोटबंदी असफल साबित हुई और लोगों के जख्‍म पर नमक छिड़क दिया गया। गाैरतलब है कि आरबीआई ने इस साल अगस्‍त में अपनी एनुअल जनरल रिपोर्ट में कहा कि कुल 99.30 फीसदी 500 और 1000 रुप ए के पुराने नोट वापस आ चुके हैं।

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