लघुकथा: छल (CHHAL: A Short story)

‘मैंने कोई छल नहीं किया...बस तुम्हें ऐसा लगता है...और क्या हमारे बचपन का प्यार इस तरह से टूट जाएगा ...एक छोटी सी बात के लिए...’
लघुकथा: गुलजार हुसैन/ Short story by Gulzar Hussain
  
उसकी आंखें लाल हो आर्इं थी...और डबडबाई आंखों में कई सवाल तैर रहे थे।  क्या वह रोते समय दुनिया की सबसे अधिक भावुक और कमजोर स्त्री हो जाती थी? लेकिन आज तो वह कमजोर हरगिज नहीं थी, क्योंकि जो हाथ थामे सामने खड़ा था वह हमेशा के लिए उससे दूर हो जाने वाला था ...और अलग हो जाने का यह फैसला क्या उसी ने नहीं किया था?

Drawing by Gulzar Hussain
‘एक बार फिर से सोचो प्लीज...बदल दो यह फैसला ...क्या मैं तुम्हारे बगैर जी सकूंगा?’

‘हां, जीना तो तुम्हें पड़ेगा ही...तड़प-तड़प के और घुट-घुट के...कोई इतना बड़ा छल करके चैन से कैसे रह पाएगा भला...’

‘मैंने कोई छल नहीं किया...बस तुम्हें ऐसा लगता है...और क्या हमारे बचपन का प्यार इस तरह से टूट जाएगा ...एक छोटी सी बात के लिए...’

‘तुम इसे छोटी बात कहोगे तो मैं मान लूंगी। मैं मान लूंगी कि मेरी अनुपस्थिति में तुम रात भर उसके कमरे में थे। ’

‘लेकिन वह तुम्हारी ही सहेली है न...तुमसे ही मिलने आती थी न...मुझे क्या लेना- देना उससे...’

‘लेकिन उसके धोखे से कई गुना बड़ा तुम्हारा धोखा है...उसके एक निमंत्रण पर तुमने बचपन के प्यार को मटमैला कर दिया?’

‘उस एक पल की इतनी बड़ी सजा?...यह तो अचानक हुआ...’

‘अचानक नहीं हुआ...अचानक कुछ नहीं होता...मेरी अनुपस्थिति में उसे बुलाना अचानक नहीं हो सकता...’

‘ मुझे इसके लिए माफ तो कर सकती हो न...’

‘माफ ही तो किया, जो तुमसे दूर होने का निर्णय किया...नाऊ यू कैन गो एनीवेयर...और मैं अब आजाद हूं तुम्हारे चंगुल से...’

इतना कहकर उसने तेजी से अपना हाथ उसके हाथ से छुड़ा लिया और तेज कदमों से पार्क से बाहर आ गई...
सूरज ढलने के बाद पेड़ों पर पक्षियों का चहचहाना तेज होता जा रहा था। 
(प्रकाशित लघुकथा)




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