Bulandshahr violence:आदमखोर भीड़ के मुंह इंसान का खून किसने लगाया?

आदमखोर गिरोह के मुंह इंसान का खून लग गया है, इसलिए यह अखलाक हो या सुबोध, किसी को नहीं बख्‍श रहा है। आखिरकार उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर (Bulandshahr) में फिर यह गिरोह गाय के नाम पर उग्र हुआ और न्‍यायप्रिय इंस्‍पेक्‍टर सुबोध कुमार सिंह (Subodh Kumar Singh) की खून पीकर ही माना।

Symbolic Photo by Hasan Almasi on Unsplash

ViewpointGulzar Hussain


कहते हैं कि आदमखोर जानवर के मुंह एक बार खून लग जाए, तो वह खून का प्‍यासा हो जाता है। ऐसा ही कुछ गाय के नाम पर हिंसा फैलाने वाले गिरोह के साथ हो गया है। इस आदमखोर गिरोह के मुंह भी इंसान का खून लग गया है, इसलिए यह अखलाक हो या सुबोध, किसी को नहीं बख्‍श रहा है। आखिरकार उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर (Bulandshahar) में फिर यह गिरोह गाय के नाम पर उग्र हुआ और न्‍यायप्रिय इंस्‍पेक्‍टर सुबोध कुमार सिंह (Subodh Kumar Singh) की खून पीकर ही माना। यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इस आदमखोर गिरोह के मुंह इंसान का खून लगाया किसने? गाय के नाम पर राजनीति करके अफवाहों की आड़ में इंसानों को मरवाने का सिलसिला शुरू किया किसने?

एक खास किस्‍म की कट्टर राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए यह आदमखोर गिरोह एक सीढ़ी के रूप में आगे बढ़ रहा है। 
Subodh Kumar Singh/ File photo 
गाय के नाम पर इंसानों का खून पीने का यह 'पिशाची सिलसिला' अखलाक, पहलू खान, उना के दलितों से होता हुआ एक जांबाज और ईमानदार पुलिस अधिकारी सुबोध तक पहुंच गया है, लेकिन फिर भी इसे रोकने के लिए कोई गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। उल्‍टे इसे राजनीतिक रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है। एक खास किस्‍म की कट्टर राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए यह आदमखोर गिरोह एक सीढ़ी के रूप में आगे बढ़ रहा है, और अखलाकों- सुबोधों को एक एक कर निगल रहा है।

हिंसक भीड़ को महज मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) की घटना कहकर हम अपनी जिम्‍मेदारी से भाग नहीं सकते। ...एक भीड़ है, वह हिंसक है और इस खूनी भीड़ को केवल भीड़ मानकर कब तक लोग टालते रहेंगे। सच तो यह है कि कोई तो है, जो इस आदमखोर भीड़ के पीछे है। वह मास्‍टरमाइंड कौन है? यही इस समस्‍या के जड़ में है। सुबोध कुमार सिंह की हत्‍या के आरोप में भी एक संगठन से जुड़े व्‍यक्ति को मुख्‍य आरोपी बनाया गया है। अब आप संगठन के राजनीतिक साठगांठ को ठीक से देखिएगा, तो तस्‍वीर बिल्‍कुल साफ हो जाएगी।


काऊ पॉलिटिक्‍स दरअसल देश की जनता से एक बड़ा छल है। इसकी आड़ में चुपके से मॉब लिंचिंग करने वाले गिरोह के हाथों में हथियार थमा दिए गए हैं, जिसे जब चाहते हैं वे इस्‍तेमाल में ले आते हैं। आदमखोर गिरोह बनाने की फैक्‍ट्री में दरअसल बेरोजगार नौजवानों को काम पर लगाया जाताा है और उन्‍हें धर्मांधता की मशीन से खून के प्‍यासे ड्रैकुला में बदल दिया जाता है। यह भी ध्‍यान देने की बात है कि काऊ पॉलिटिक्‍स से फायदा किसे है?
जो ताकतवर लोग आदमखोर गिरोह बनाने की  फैक्‍ट्री चलाते हैं, वे खुद तो अपने बच्‍चों को महंगे स्‍कूलों में पढ़ाकर उन्‍हें डॉक्‍टर- इंजीनियर बनाते हैं, जबकि दूसरे बेरोजगारों को वे इसमें घुसाकर आदमखोर बना देते हैं। 
काऊ पॉलिटिक्‍स हो या मंदिर- मस्जिद के नाम पर की जा रही राजनीति हो, इन सबमें ऐसे युवकों को जोड़ा जा रहा है, जो बेरोजगार युवक हैं। यहां, ध्‍यान देने वाली बात है कि जो ताकतवर लोग आदमखोर गिरोह बनाने की  फैक्‍ट्री चलाते हैं, वे खुद तो अपने बच्‍चों को महंगे स्‍कूलों में पढ़ाकर उन्‍हें डॉक्‍टर- इंजीनियर बनाते हैं, जबकि दूसरे बेरोजगारों को वे इसमें घुसाकर आदमखोर बना देते हैं। आप याद कीजिए कि कैसे एक पार्टी का बड़ा नेता मॉब लिंचिंग के आरोपियों का माला पहनाकर स्‍वागत करता है। इन सब कट्टर राजनीति के धागों को एक साथ जोड़ कर देखिए, आप साफ- साफ देख पाएंगे कि आदमखोर गिरोह के मुंह इंसान का खून किसने लगाया है?

Comments

Popular posts from this blog

बदलता मौसम : लघुकथा

सत्य की खोज करती हैं पंकज चौधरी की कविताएं : गुलज़ार हुसैन

प्रेमचंद के साहित्य में कैसे हैं गाँव -देहात ?