क्या कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न रोकने में मील का पत्थर साबित होगा #MeToo अभियान?
(Article: Gulzar Hussain)
20 महिला पत्रकारों का यौन शोषण करने के आरोपों से घिरे भाजपाई मंत्री एमजे अकबर के इस्तीफे को न्याय मांगती स्त्रियों की बड़ी जीत कही जा रही है। इससे यह उम्मीद जगी है कि अब कार्यस्थलों पर पुरुष बॉस और वरिष्ठ सहकर्मियों के उनमुक्त यौन दुर्व्यवहार पर लगाम लगेगी।
#MeToo अभियान के तहज एमजे पर आरोप लगाने वाली वरिष्ठ पत्रकार प्रिया रमानी, सुपर्णा शर्मा, सबा नकवी और गज़ाला वहाब सहित प्राय: सभी स्त्रियों ने इस इस्तीफे को बड़ी सफलता बताते हुए खुशी जाहिर की है।हालांकि इस मुद्दे पर अभी कोर्ट का फैसला आना शेष है फिर भी इस इस्तीफे ने एक सकारात्मक राह तो तैयार कर ही दी है। प्रिया रमानी ने ट्विटर पर लिखा है, "एमजे अकबर के इस्तीफे से हमारे आरोप सही साबित हो गए हैं।हमें उस दिन का इंतज़ार है, जब हमें कोर्ट में इंसाफ मिलेगा।"
दरअसल #MeToo अभियान के तहत जो स्त्रियों में एकजुटता दिखी है, वही इस अभियान की बड़ी ताकत है। प्रसिद्ध नारीवादी सीमोन द बुवा ने 'द सेकंड सेक्स' में लिखा है कि स्त्रियों में कहीं भी एकजुटता नहीं होती और इसी का फायदा पुरुषवादी उठाते चले आ रहे हैं। लेकिन #MeToo अभियान में न केवल एकजुटता दिखाई दी बल्कि सामूहिक आक्रोश भी दिखाई दिया, जिससे भाजपाई सत्ता सकते में आ गई।
सबसे अधिक उल्लेखनीय तथ्य तो यह है कि #MeToo अभियान को किसी भी राजनीतिक पार्टी ने बहुत गंभीरता से सपोर्ट नहीं किया। हां, कहीं- कहीं वामपंथी पार्टियों ने सड़क पर उतर कर पदर्शन किया, लेकिन मीडिया ने इसे ठीक से प्रसारित करना भी जरूरी नहीं समझा।
#MeToo अभियान ने एक बहुत जरूरी उम्मीद यह जगाई है कि अब कार्यस्थलों पर होने वाले यौन उत्पीड़न के खिलाफ स्त्रियों में बोलने का साहस पैदा हुआ है। यह संदेश बड़े शहरों से लेकर छोटे गांवों- कस्बों तक की लड़कियों में साहस भर चुका है। निस्संदेह इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई भी देंगे। गौरतलब है कि प्रिया रमानी के अलावा कनिका गहलोत, तुषिता पटेल, प्रेरणा बिंद्रा, मनीषा पांडे, मीनल बघेल, रमोला तलवार, कनीज़ा कज़ारी, मालविका बनर्जी, ए टी जयंती, जोनाली, संजरी चटर्जी, मिनाक्षी कुमार, सुजाता दत्त, हमिदा पार्कर सहित 20 महिलाओं ने एमजे पर ऐसे ही आरोप लगाए हैं। लेकिन यह लड़ाई केवल 20 स्त्रियों की ही नहीं, बल्कि सपने देखने वाली हर लड़की की यह लड़ाई बन चुकी है।
दरअसल एमजे अकबर, नाना पाटेकर, आलोक नाथ, साजिद खान, चेतन भगत जैसे कई लोगों पर जो आरोप लगे हैं, ये अपने- अपने क्षेत्र के ताकतवर लोग हैं। ऐसे ताकतवर पद पर बैठे लोगों के खिलाफ जल्दी आरोप नहीं लगते और कभी कभार लगते भी हैं, तो रफा- दफा कर दिए जाते हैं, लेकिन #MeToo अभियान की बात ही कुछ और है। इस अभियान के तहत एकजुट होकर जो आवाज उठी है, वही इसकी सबसे बड़ी ताकत है।
20 महिला पत्रकारों का यौन शोषण करने के आरोपों से घिरे भाजपाई मंत्री एमजे अकबर के इस्तीफे को न्याय मांगती स्त्रियों की बड़ी जीत कही जा रही है। इससे यह उम्मीद जगी है कि अब कार्यस्थलों पर पुरुष बॉस और वरिष्ठ सहकर्मियों के उनमुक्त यौन दुर्व्यवहार पर लगाम लगेगी।
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Drawing: Gulzar Hussain |
#MeToo अभियान के तहज एमजे पर आरोप लगाने वाली वरिष्ठ पत्रकार प्रिया रमानी, सुपर्णा शर्मा, सबा नकवी और गज़ाला वहाब सहित प्राय: सभी स्त्रियों ने इस इस्तीफे को बड़ी सफलता बताते हुए खुशी जाहिर की है।हालांकि इस मुद्दे पर अभी कोर्ट का फैसला आना शेष है फिर भी इस इस्तीफे ने एक सकारात्मक राह तो तैयार कर ही दी है। प्रिया रमानी ने ट्विटर पर लिखा है, "एमजे अकबर के इस्तीफे से हमारे आरोप सही साबित हो गए हैं।हमें उस दिन का इंतज़ार है, जब हमें कोर्ट में इंसाफ मिलेगा।"
दरअसल #MeToo अभियान के तहत जो स्त्रियों में एकजुटता दिखी है, वही इस अभियान की बड़ी ताकत है। प्रसिद्ध नारीवादी सीमोन द बुवा ने 'द सेकंड सेक्स' में लिखा है कि स्त्रियों में कहीं भी एकजुटता नहीं होती और इसी का फायदा पुरुषवादी उठाते चले आ रहे हैं। लेकिन #MeToo अभियान में न केवल एकजुटता दिखाई दी बल्कि सामूहिक आक्रोश भी दिखाई दिया, जिससे भाजपाई सत्ता सकते में आ गई।
सबसे अधिक उल्लेखनीय तथ्य तो यह है कि #MeToo अभियान को किसी भी राजनीतिक पार्टी ने बहुत गंभीरता से सपोर्ट नहीं किया। हां, कहीं- कहीं वामपंथी पार्टियों ने सड़क पर उतर कर पदर्शन किया, लेकिन मीडिया ने इसे ठीक से प्रसारित करना भी जरूरी नहीं समझा।
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Drawing: Gulzar Hussain |
#MeToo अभियान ने एक बहुत जरूरी उम्मीद यह जगाई है कि अब कार्यस्थलों पर होने वाले यौन उत्पीड़न के खिलाफ स्त्रियों में बोलने का साहस पैदा हुआ है। यह संदेश बड़े शहरों से लेकर छोटे गांवों- कस्बों तक की लड़कियों में साहस भर चुका है। निस्संदेह इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई भी देंगे। गौरतलब है कि प्रिया रमानी के अलावा कनिका गहलोत, तुषिता पटेल, प्रेरणा बिंद्रा, मनीषा पांडे, मीनल बघेल, रमोला तलवार, कनीज़ा कज़ारी, मालविका बनर्जी, ए टी जयंती, जोनाली, संजरी चटर्जी, मिनाक्षी कुमार, सुजाता दत्त, हमिदा पार्कर सहित 20 महिलाओं ने एमजे पर ऐसे ही आरोप लगाए हैं। लेकिन यह लड़ाई केवल 20 स्त्रियों की ही नहीं, बल्कि सपने देखने वाली हर लड़की की यह लड़ाई बन चुकी है।
दरअसल एमजे अकबर, नाना पाटेकर, आलोक नाथ, साजिद खान, चेतन भगत जैसे कई लोगों पर जो आरोप लगे हैं, ये अपने- अपने क्षेत्र के ताकतवर लोग हैं। ऐसे ताकतवर पद पर बैठे लोगों के खिलाफ जल्दी आरोप नहीं लगते और कभी कभार लगते भी हैं, तो रफा- दफा कर दिए जाते हैं, लेकिन #MeToo अभियान की बात ही कुछ और है। इस अभियान के तहत एकजुट होकर जो आवाज उठी है, वही इसकी सबसे बड़ी ताकत है।
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