Assembly election: फेल हुई मंदिर- मस्जिद की राजनीति, रोजी- रोटी की बात हो
Viewpoint : GuLzar Hussain
प्रतीकात्मक तस्वीर/ File photo दरअसल यह समझना बेहद आसान है कि कौन सी पार्टी किस मुद्दे से बचने के लिए किस मुद्दे का सहारा ले रही है। यह सही है कि भाजपा जब सत्ता में आई थी, तो किसानों- खेतिहरों और रोजगार से जुड़ी समस्याओं को दूर करना उसके लिए बड़ी चुनौती थी, लेकिन उसने इस चुनौती से मुंह चुराना ही जारी रखा।
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों (Assembly election) में भाजपा की करारी शिकस्त सभी पार्टियों के लिए एक सबक भी है। इन चुनाव नतीजों से यह बात तो पूरी तरह साफ हो गई है कि जनता को मंदिर- मस्जिद की राजनीति (Politics) नहीं, बल्कि से रोजी- रोटी की जरूरत पूरी करने वाली सरकारें चाहिए। देश की नई पीढ़ी ने साफ तौर पर यह देखा कि भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए कैसे- केसे हथकंडे अपनाए। कभी भाजपा ने मंदिर- मस्जिद के मुद्दे को हवा दी, तो कभी गाय के बहाने एक सांप्रदायिक गोलबंदी करने का प्रयास किया, लेकिन देश की जनता ने सारे व्यर्थ मुद्दों वाले गुब्बारे की हवा निकाल दी।
आखिकरकार जनता ने यह समझ लिया कि भाजपा ने पिछले चार सालों में ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसका ठीक से उल्लेख तक कर सके और इसीलिए वह धर्म की राजनीति के सहारे आगे बढ़ना चाहती है।भाजपा ने राजस्थान सहित पांच राज्यों के चुनाव प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को स्टार प्रचारक बनाया, जबकि पीएम मोदी ने स्वयं महास्टार प्रचारक के तौर पर अपने को चुनाव प्रचार की आग में झोंक दिया। योगी आदित्यनाथ ने 'अली- बजरंगबली' जैसे भड़काऊ बयानों के सहारे वोट बैंक बढ़ाने की नीति अपनाई, लेकिन जरा सोचिए, लगातार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रभावित होकर आगे बढ़ रही भारत की नई पीढ़ी कब तक ऐसे फालतू मुद्दों पर अपने वोट बर्बाद करती रहेगी। आखिकरकार जनता ने यह समझ लिया कि भाजपा ने पिछले चार सालों में ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसका ठीक से उल्लेख तक कर सके और इसीलिए वह धर्म की राजनीति के सहारे आगे बढ़ना चाहती है।
भाजपा यदि किसानों के मुद्दे पर कुछ कार्य करना चाहती, तो उसे धर्म की राजनीति की जरूरत ही नहीं थी। रोजगार और महंगाई को लेकर भी भाजपा का कोई ठोस काम नहीं दिखाई दिया।दरअसल यह समझना बेहद आसान है कि कौन सी पार्टी किस मुद्दे से बचने के लिए किस मुद्दे का सहारा ले रही है। यह सही है कि भाजपा जब सत्ता में आई तो किसानों- खेतिहरों और रोजगार से जुड़ी समस्याओं को दूर करना उसके लिए बड़ी चुनौती थी, लेकिन उसने इस चुनौती से मुंह चुराना ही जारी रखा। चाहे किसानों की मांगें नहीं सुनने की बात हो या फिर एमपी में किसानों पर फायरिंग हो, भाजपा का घमंड ही लोगों को दिखा। भाजपा यदि किसानों के मुद्दे पर कुछ कार्य करना चाहती, तो उसे धर्म की राजनीति की जरूरत ही नहीं थी। रोजगार और महंगाई को लेकर भी भाजपा का कोई ठोस काम नहीं दिखाई दिया। इन स्थितियों से जनता ने भाजपा का सारा खेल समझ लिया।
इसके अलावा भाजपा- आरएसएस के नेताओं- मंत्रियों ने जिस तरह संविधान और एससी एसटी एक्ट को लेकर अपनी मंशा जाहिर की, इससे भी उनकी कलई खुल गई। भाजपा के मंत्री अनंत हेगड़े से लेकर कई नेताओं ने संविधान को बदलने और समीक्षा करने की जरूरत पर भड़काऊ बयान दिए, जिससे देश की न्यायप्रिय जनता को यह सब बहुत खतरनाक प्रतीत हुआ। जनता के मन में संविधान की चिंता घर कर गई, जिसका नुकसान भाजपा को होना ही था।
गाय के नाम पर मॉब लिंचिंग जैसी खतरनाक राजनीति को हवा देना भी भाजपा को भारी पड़ गया। इन चुनावों से पहले भाजपा नेता जयंत सिन्हा ने तो मॉब लिंचिंग के आरोपियों का फूल- मालाओं से स्वागत तक कर डाला। देश की जनता का संदेह इससे और गहरा गया। लोगों ने यह समझ लिया कि भाजपा इसके सहारे वोट बैंक की राजनीति कर रही है और जनता जब किसी पार्टी को मन से उतार दे, तो उसे कुर्सी छोड़नी ही पड़ती है।
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