दूधवाला : लघुकथा

 

Photo by Mihail Macri (download free from unsplash images)

लघुकथा : शमीमा हुसैन

आज की सुबह बहुत साफ और नर्म है। रीना चाची उठकर बर्तनों को जमा कर रही हैं। मोरी पर रात के जूठे बर्तन धोने के लिए रख रही हैं। सुबह पांच बजे उठ जाती हैं। उनकी लाइफ बड़ी मिनिंगफुल है। रीना चाची हमेशा खुश रहती है। उनके तीन लड़के हैं। बड़े वाले का अभी पिछले साल मास्टरी में बहाली हुई है। माँ-बाप बहुत खुश हैं। माँ की खुशी का रोज ही ठिकाना नहीं रहता है। जब बाबू पैंट, शर्ट पहनकर तैयार होकर निकलता है, तो माँ का कलेजा बहुत चौड़ा हो जाता है। चाची बड़े लड़के को बाबू ही कहती हैं। अभी बाबू का स्कूल मॉर्निंग चल रहा है। बाबू का सब काम वह बहुत ख़ुशी-खुशी करती है। रीना चाची को और जल्दी -जल्दी करना पड़ता है, क्योंकि स्कूल मॉर्निंग है? साढ़े छह बजे दूध वाला सुरेश राय आ जाता है। दूध लेती है फट से चूल्हा पर चढ़ा देती है। चूल्हा पहले से गर्म रहता है। 

दूध तुरंत गर्म हो जाता है। बाबू का दूध-रोटी गुड़ खाने का नियम है। मौसम कैसा भी हो, रोटी दूध ही खाना है। 

रोटी मकई की हो या गेहूं की, वह दोनों ही बड़े प्यार से खाता है। 

...पर आज दूध लेकर सुरेश अब तक आया नहीं ...भुखले बाबु चला गया ...चावल साफ करते हुए रीना यही सोच रही थी। वह सुरेश से दूध लेना छोड़ देगी। आज सुबह बाप भी गुस्सा हो गया कि कभी रोटी, सब्जी भी खा सकता है ये लड़का। नखरा पकड़े हुए है। 

आखिरकार आठ बजकर दस मिनट पर सुरेश आया और बोलना शुरू कर दिया, ''मालकिन आज बहुत लेट हो गया। बहुत बेला हो गया।'' 


वह बिना रुके बोल रहा था, ''मालकिन आज अजान की आवाज ही नहीं आई। इसलिए उठ नहीं पाएं। सब दिन अजान के आवाज से जग जाते हैं। भईंस को एक नाद खिला दो, तो दूध निकालने देती है, नहीं तो छनक जाती है।''


रीना चाची मुंह जहर कर के बोली, ''बहाना बहुत है। अब हम दूध छोड़ देम। जब बाबू को दूध टाइम पर नहीं मिला, तब फायदा क्या।''


सुरेश इस घर को खोना नहीं चाहता था, क्योंकि इस घर से पैसा टाइम पर मिलता है। वह विनय भाव से बोला, ''न मालकिन सच्च कहा, बहाना नहीं है। आजान के आवाज से हमर पूरा मोहल्ला जग जाता है।'' 


रीना अपने दूध के भगोने हाथ में लेते हुए बोली, ''महीना में कई रोज ऐसा करते हो।''


''अब नहीं होगा मालकिन।'' वह गमछा ठीक करता हुआ बोला। 


सुरेश की दया याचना पर रीना को दया आ गई। रीना बोली, ''कल से ऐसा नहीं होना चाहिए।''


''हां, ऐसा नहीं होगा।'' दूध का बाल्टी दोनों हाथ से उठाते हुए सिकंदर आगे बढ़ गया।

 

सुरेश सात- आठ घर में दूध पहुंचाता है। तीन घर में समय की पाबंदी है। वह रास्ते में सोचता है कि नुरमा के बेटे ने आज अजान क्यों नहीं दिया ...अजान से सारे मुहल्ले को लाभ है ...अजान से पूरे दिन का काम, धंधा बंधा है। दोपहर के अजान से खेत में काम करने वाले मजदूर का एक बेला का काम पूरा हो जाता है ...छुट्टी हो जाती है ...सुबह चार बजे के अजान से पूरे मोहल्ले की रोटी कमाने की व्यवस्था शुरू हो जाती है। 


नुरमा के बेटे पर आज सुरेश बहुत गुस्सा है। वह सोचता है ...शाम चार बजे असर का अजान होते ही भैंस को लेकर लोग नाहर पर  जाते हैं ...मवेशी और बकरी को चराते हैं ...हरी, चरी काटते हैं। जिंदगी में बड़ी आसानी हेाती है अजान से ...सब काम का समय बन जाता है।


दोपहर में नुरमा खेत में मिल गया। सुरेश ने पूछा, ''भाई, तुम्हारे बेटे ने अजान क्यों नहीं दिया?''


नुरमा बोला, ''उसने अजान तो दिया है।''


सुरेश ने हैरानी से कहा, तो आवाज क्यों नहीं आई? 


नुरमा ने गले पर पड़ा गमछा ठीक करते हुए कहा, ''अरे, सुरेश भाई क्या बताऊं। माइक ही ख़राब हो गया है न।''  


सुरेश ने मुस्कुराते हुए कहा, ''अच्छा, जल्दी से माइक बनवा लो।''    






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