शमीमा हुसैन की लघुकथा : ओ रेसलर

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बीना बहुत देर से मूर्ति की तरह बैठी थी। उसकी आंखों के सामने मानो सिनेमा की तरह दृश्य आ-जा रहे थे। उसे यह यादों का सिनेमा बहुत ही अच्छा लग रहा था। उसे इस सिनेमा में एक छोटी लड़की दिखाई देती है। वह लड़की लाल लहंगा पहने हुए, लाल बिंदी लगाकर और लाल सैंडल पहनकर खूब खुश है। सिनेमा में एक लंबी छरहरी महिला भी आती है। उसके बोलने की अदा से बीना समझ जाती है। वह मां है। मां आती हैं और बोलती है, ''हर पार्टी- त्योहार, फंक्शन, शादी सब दिन सभी कार्यक्रम में यही लाल लहंगा और यही लाल बिंदी पहनती हो।'' 


मां गुस्से में है, ''तुम्हारे पास पीला और ब्लू लहंगा भी है, वह क्यों नहीं पहनती हो।'' 


मां अपने बाल में जोर-जोर से कंघी करने लगती है।


इस दृश्य में पापा भी हैं। वह चिल्लाकर बोलते हैं, ''जल्दी चलो। चलना है कि नहीं। देर करोगी तो शादी समारोह खत्म हो जाएगा।' 


मां तुरंत जवाब देती है, ''हां आती हूं। इस लड़की को समझाकर हार गई हूं।'' 


बीना को सजना-संवरना बहुत पसंद था। बिना जब तीसरी क्लास में गई, तो वह अचानक बदल गई। उसने सजना-संवरना छोड़ दिया और बस एक ही रट लगाए रखी कि मुझे रेसलर बनना है। ...मैं रेसलर बनूंगी ...मुझे ओलंपिक में खेलना है।

उसने लाल बिंदी लगाना भी छोड़ दिया। उसने अपने नजदीकी कुश्ती केंद्र में जाना शुरू कर दिया। उसे अब शादी-विवाह समारोह में ले जाने से पहले कहना पड़ता है कि बीना तैयार हो जा। तब कहीं जाकर वह बदले हुए मन से कहीं जाती है। 


लेकिन उसके इस फैसले से पापा बहुत खुश हुए। वे कहते हैं, ''मैं तुम्हें रेसलर बनाऊंगा। हां, मैं तुम्हें रेसलर बनाऊंगा।'' 


पापा पूरा सहयोग करने लगे। बीना सब कुछ छोड़कर रेसलर बनने पर लग गई। बस उसे यही याद रहा कि मुझे ओलंपिक में खेलने जाना है और इंडिया के लिए मेडल लाना है। घर वालों ने समझ लिया कि यह दूसरी मिट्टी का बनी है और अब इसे समझाना बेकार है। अब इसके साथ चलने में ही भलाई है। 


सच में बीना की मेहनत रंग लाई। वह ओलंपिक में गई और स्वर्ण पदक तक ले आई। अखबारों और टीवी में वह छा गई। देश के लोग, नेता, मंत्री सब बीना को सम्मान देने लगे। सभी कहने लगे बीना अपने भारत की हीरा है हीरा। देश-प्रदेश हर जगह के लोग खुश थे। बीना के घरवाले भी बहुत खुश थे। बेटी ने नाम ऊंचा किया है। वह भारत की महान रेसलर बन गई। 


''अरी ओ बीना।'' 

अचानक सहेली सुरेखा की आवाज से बीना के आंखों के आगे चल रहा सिनेमा का दृश्य उड़न छू हो गया। सुरेखा भी रेसलर है।


सुरेखा आकर उसके बगल में बैठ गई है। बीना सोच रही है कि उसके सिनेमा में जो आगे के दृश्य बाकी हैं, वे तो बेहद कष्टप्रद हैं। वह एक बात कुछ दिनों से सुन रही है, पर उस पर भरोसा तो नहीं हो रहा। लेकिन यही हकीकत है। 


...वह अपने अंदर हिम्मत भी जुटा रही है ... कि क्या किया जाए और क्या न किया जाए ...रेसलिंग फेडरेशन में ऐसा भी हो रहा है और ऐसा भी हुआ है ...उसे गुस्सा भी आता है और रोना भी आता है ...कि अब वह क्या करे ...कहां शिकायत करे ...कहां इंसाफ की गुहार लगाए। 


वह सहेली सुरेखा से बात करती है। उन दोनों को ही अब पता है कि हकीकत क्या है। फेडरेशन के हेड के खिलाफ लड़ना बहुत ही मुश्किल है। उसकी बहुत ऊंची पहुंच है। वह बहुत ताकतवर और छंटा हुआ गुंडा है। 


सुरेखा बोलती है, ''हम उसके खिलाफ कैसे लड़ेंगे। हम सब बर्बाद हो जाएंगे। हम सबका करियर चला जाएगा।'' 


बीना गुमसुम सोच रही है कि पुरुषों का यही कथन होता है कि स्त्री कमजोर है, इसलिए उसके साथ शोषण हुआ है। पर हम तो वैसी स्त्री हैं, जो मजबूत मानी जाती हैं। हम ताकतवर हैं। हम देश के गौरव हैं। हम देश के लिए जीते हैं। फिर हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। हमारे पास शरीर बल भी है और बुद्धि बल भी है। फिर हमारा यौन शोषण क्यों हो रहा है? 


बीना सोचती है कि ये पुरुष कैसे संसार की रचना करना चाहता है? ...दूसरी की बेटियों का शरीर तुम्हें खेलने के लिए चाहिए और अपनी बेटी को सुरक्षित संसार दोगे? ...ये कैसे संभव है? ...हे महान शक्तिशाली पुरुष ...तुम्हें कुछ टाइम के लिए मोहलत मिली है बस ...तू अमर नहीं है ...तुम्हारी भी बेटी है। 


बीना तो शीर्ष खिलाड़ियों में से थी, लेकिन जूनियर खिलाड़ियों के साथ शोषण हुआ था। उनकी छातियों पर हाथ फेरा जा रहा था। उनका अकेले गलत तरीके से परीक्षण किया जा रहा था। जूनियर महिला खिलाड़ी बहुत आहत थी। दुखी थी। बीना ने सभी खिलाड़ियों से विचार-विमर्श किया। किसी ने कहा कि हम बात करेंगे। किसी ने कहा कि अपना मामला नहीं है छोड़ो जाने दो। 


बीना ने साफ साफ कह दिया कि बच्चियों के साथ शोषण हुआ है। और आज चुप हो गए, तो कल भी यही सवाल जारी रहेगा। हम फेडरेशन के अध्यक्ष के खिलाफ जाएंगे। आवाज उठाएंगे। हम सब एक होकर आवाज उठाएंगे और हम सबको आवाज उठाना चाहिए। हम सब खेल मंत्री से मिलकर बात करेंगे। 


आवाज उठाई गई, आश्वासन भी मिला, लेकिन महीनों बीतने के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।


अब सभी खिलाड़ियों के पास एक ही रास्ता था और वही उन्होंने किया। सभी धरने पर बैठ गईं। पुलिस जांच हुई, तो गंभीर आरोप सामने आए, पर मुख्य अपराधी मूंछ ऐंठते घूमता रहा। 

पर बीना तनिक नहीं बौखलाई। उसने ठान लिया था कि मैं मर जाऊंगी पर इंसाफ दिलवा कर रहूंगी। 

-शमीमा हुसैन

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