लघुकथा : उसकी पीठ की धारियां
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उसने जिस दिन अपनी पीठ दिखाई थी, उस दिन हम फिर से स्कूल की
पीछे छूट गई दुनिया में लौटने लगे. उसकी पीठ पर जेब्रा के शरीर की तरह धारियां थीं.
पूरी पीठ धारियों से भरी थी. ये धारियां हल्की थीं, लेकिन स्थायी थीं. ये धारियां
उसे स्कूल के किसी भयावह दिन में ले गईं.
वह मेरी ओर बिना देखे बोलता रहा और मैं
आश्चर्य से उसके चेहरे को पढ़ता रहा. यह उन दिनों की बात थी जब हम दोनों आठवीं
कक्षा में थे. किसी दिन उसने अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया था. शायद इतनी सी ही
बात थी या इससे भी छोटी कोई वजह. अंग्रेजी का वह शिक्षक उस दिन किसी निर्दयी हमलावर
में तब्दील हो गया था. मजबूत छड़ी से शिक्षक ने उसकी पीठ पर वार करना शुरू किया. वह
चीख रहा था ...गिड़गिड़ा रहा था, लेकिन उसने एक नहीं सुनी. वह तबतक उसे पीटता रहा जब
तक उसकी शर्ट खून से लाल नहीं हो गई. टिफिन की घंटी बजी, तो छड़ी थम गई, लेकिन उसकी
सिसकियाँ नहीं थमीं. मैं दूसरे सेक्शन में था इसलिए मुझे कुछ पता नहीं था.
'लेकिन तुमने उसका विरोध क्यों नहीं किया?' मैंने पानी का गिलास अपने होंठों से लगाते हुए
कहा.
उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आई, 'उस उम्र में क्या समर्थन और क्या विरोध. तुम
भी तो मेरे सहपाठी थे ...क्या ऐसा सोच सकते थे उस समय?'
मैं निरुत्तर था, 'लेकिन घर पर आकर तो कुछ कहा होगा पापा से.'
'उन्होंने कहा गलती तुम्हारी ही रही होगी.'
'और माँ ने, ...माँ ने क्या कहा?'
उसने मेरी ओर देखा. उसकी आँखे भर आईं थीं,
'हाँ
...माँ बहुत गुस्सा हुई थी टीचर पर. लेकिन क्या करती. इधर -उधर घूमते हुए बड़बड़ाई और
फिर सब कुछ जैसे का तैसा हो गया.'
'अब क्या सोचते हो उस टीचर के बारे में?'
'...क्या सोचना है, अच्छा ही किया जो मेरी पीठ पर ये निशान बना दिए, मैं मन ही मन
उसे धन्यवाद देता हूँ, इसी कारण शायद मैं मन लगाकर पढ़ाई करता रहा...'
'तुम गलत
सोचते हो दोस्त, उस शिक्षक ने क्राइम किया है. किसी भी शिक्षक का अपने छात्र के साथ
इस तरह दुर्व्यवहार करना उचित नहीं. उस पर तो कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए...'
अचानक वो गंभीर हो गया, 'क्या कर लोगे? क़ानून-वानून से कुछ नहीं होगा ...तुम्हारी ये
आधुनिकता और प्रगतिशीलता भी बस कहने और सुनने भर के लिए है. अधिकांश सरकारी या गैर
सरकारी स्कूलों और ट्यूशन क्लासेस में बच्चों पर अभी भी अक्सर अत्याचार होते रहते
हैं. होमवर्क नहीं करने, लापरवाह होने या बेवकूफ होने के नाम पर बच्चों को शारीरिक
और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया ही जाता है. इसके अलावा अधिक नंबर लाकर पास होने का
दवाब अलग. अब तो छात्र -छात्राएं आत्महत्याएं भी कर रहे हैं. बच्चों का दुःख समझने
को किसको पड़ी है यार. वह तो न मन की कर पाता है और न सोच पाता है. ये स्कूल उसे
अपने अनुसार ढालते हैं. तो ऐसी स्थिति में क्या क्या कर लोगे तुम. बताओ जरा? ..आज
हर बच्चे की पीठ पर ही धारियां नहीं हैं, मन में भी हैं ..देख पाओगे इसे ...बताओ?'
मैं जल्दी से एक गिलास पानी और पी गया.
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गुलज़ार हुसैन
(एक पुरानी फेसबुक पोस्ट)
बेहद अच्छी लघुकथा है ऐसी तमाम धारियां जो पीठ पर हैं दिख जाती हैं लेकिन जो आत्माओं पर है वो तो और भी भयानक रूप लेती है और उन्हें कभी मिटाया नहीं जा सकता। आपने पानी जो जल्दी से पी लिया लिखा वो ऐसे लगता है जैसे तमाम याद आयी धारियां पानी से मिटाने की कोशिश की जा रही है और वो उभर रही हैं कश्मकश बन कर
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