देवदास की आखिरी इच्छा

   
देवदास फिल्म का पोस्टर/ सोशल मीडिया से साभार


By Gulzar Hussain

उसकी आखिरी इच्छा क्या थी, यही न कि सांसों की डोर टूटने से पहले बस एक बार वह अपने बचपन की प्रेमिका को देख ले...
लेकिन यह भी नहीं हो सका। पारो के दरवाजे पर आकर उसके नाम लेता हुआ देवदास दम तोड़ता रहा ...लेकिन पारो उससे मिलने की चाहत के बावजूद नहीं आ पाई ...वह देवदास से मिलने के लिए घर से दौड़ी लेकिन उसे घर के बंधन ने रोक लिया। दरवाजे बन्द कर दिए गए।
क्या यही है किसी सच्चे प्रेम की मंजिल?
शरतचंद्र के उपन्यास पर आधारित 1955 में बनी बिमल राय की इस फिल्म में दिलीप कुमार ने मानो देवदास के हर सजीले पल को जीवंत कर दिया है। ट्रेन से उतरने के बाद नशे में लड़खड़ाते देवदास के मन में बस एक ही आस है कि वह पारो से मिल ले। यह ठीक ऐसी ही आस या इच्छा है, जब कोई भी व्यक्ति मरने से पहले अपने सबसे प्रिय कार्य को पूरा कर लेना चाहता है। एक चित्रकार चाहता है कि मरने से पहले उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति पूरी हो जाए ...एक उपन्यासकार अपनी मौत से पहले कालजयी उपन्यास लिख लेना चाहता है ...एक पिता अपने बच्चों के सपने पूरे होते देखने के बाद ही मरना चाहता है ...दरअसल प्रेम यही है ...प्रेम दर्द पाकर ही संपूर्ण होता है। पारो अगर अपने घर के बड़े दरवाजे को तोड़कर देवदास को देख लेती ... उससे लिपट कर रो लेती ... उससे बातें कर लेती, तो क्या होता? क्या है जो टूट जाता? क्या है जो छिन्न-भिन्न हो जाता। बस यही सवाल इस अमर प्रेम कहानी से उपजा विस्फोटक पल है। पारो अब विवाहित है, उसका अब बचपन के प्रेम को याद करना पाप है। उसके मुंह से एक बार प्रेमी का एक बार नाम निकलना गुनाह है। प्रेमी को एक बार देख लेना, मानो इस पुरुषवादी सत्ता का हिल जाना है।
उस आखिरी क्षण में दिलीप कुमार की डबडबाई आंखों में जो बसा है ...जो तलाश है ...जो करुणा है ...जो खालीपन है ...वह क्या है? क्या यही वह बेचैनी नहीं है, जो हम सबके मन में कौंधती है और उसे हम एक झटके में बाहर निकाल देते हैं।
इस फिल्म को एक बार फिर से देखने के बाद मन बेहद बेचैन हो गया है।


Comments

  1. देवदास फिल्म एक एतिहासिक फिल्म है
    यह सच है समाज में प्रेम करना आसान नहीं,एक ऐसा इंसान जो आप को अपने से भी प्यारा लगे,जिस के साथ आप अपने जीवन के कठिन से कठिन दौर को भी पार करने में सफल हो पहली बात मिलना ही कठिन काम है लेकिन जब मिल जाता है तो सामाजिक बंधन रितिक रिवाज कैसे कैसे आपको उस इंसान से दूर रखने का प्रयास करते हैं यही देवदास फिल्म में है , मुझे पूरी फिल्म में सब से प्रभावित करने वाला दृश्य वो लगता है जहां पारो देवदास से वचन लेती है कि,, तुम मेरी कसम खाओ कि मुझे जीवन में अपनी सेवा का मौका जरुर दोगे और देवदास उसे छू कर कसम खाता है जरुर। ये कसम और हामी भरना इंसानियत से भरे प्रेम को खूबसूरती से दिखाता है

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