लघुकथा : जवानी
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Photo by Briana Tozour on Unsplash |
कथाकार : शमीमा हुसैन
''ताहिरा ...ताहिरा, क्या कर रही हो? आज तो तुम्हारा छुट्टी का दिन था, घर पर थोड़ा आराम ही कर लेती।'' दूर से मां की आवाज आई।
ताहिरा अनसुना करते हुए बाथरूम की तरफ चली जाती है। फिर वहां से आकर किचन में जाकर देखती है, उसका मनपसंद खाना खीर-पूरी बना हुआ है। इसके बाद वह सीधे मां के पास आकर कहती है, ''ममा, आज तो आपने मेरे पसंद का खाना बनाया है। ...शुक्रिया ममा। मैं तो आलिया आंटी के पास गई थी और उसके बाद सविता आजी के इधर चली गई, इससे लेट हो गया।''
ममा तुनक कर बोली, ''मुझे कुछ मत सुना, तेरे दिल में जो आए तू कर।''
ताहिरा जानती थी ममा को कैसे मनाना है। ममा लेटी हुई थी। वह सीधा उनके पैर के पास बैठ गई और उसके पैर दबाने लगी। ममा चाहे कितनी भी गुस्सा क्यों न हो, वह पैर दबाने से पिघल ही जाती है।
थोड़ी देर में ही ममा बोल पड़ी, ''चल, खाना लगाती हूं। छोड़, पैर में दर्द नहीं है।''
''ममा थोड़ा सा दबा देती हूं।'' ताहिरा पैर दबाते हुए बोलती है।
ममा पैर को खींचकर उठ जाती है। वह खाना लगाने लगती है। इसके बाद दोनों मां-बेटी खाना खाकर फिर बिस्तर पर आ जाती है।
लेटे-लेटे ममा बोलती है, '' देख ताहिरा, बुड्ढे लोगों के साथ मत रहा कर, नहीं तो बुड्ढे जैसी सोच हो जाएगी तुम्हारी।''
पर ताहिरा इसके उलट सोचती थी। किसी का बुढ़ापा और शारीरिक कमजोरी देखकर ताहिरा को अपनी जवानी और ताकत पर अभिमान होता। वह सोचती ...कुदरत ने हमें बहुत बड़ी चीज दी हुई है। मैं जवान हूं ...स्वस्थ हूं ...इस लाइन को वह जब भी किसी बुड्ढे को देखती तो मन ही मन बोलती। वह किसी भी बुड्ढे की सहायता करने को तैयार रहती थी। बुढ़ापा देख कर उसे हमेशा यह एहसास होता कि उसे अपनी जवानी को बचाए रखनी है। ऐसा वह सोचती थी कि काश वह कभी बुड्ढी नहीं होती और सदा ऐसे ही जवान रहती। वह सोचती कि बुढापा आने के कारण क्या हैं? वह सोचती ...आज के समय में लोग जल्दी बुड्ढा हो रहे हैं ...सारा खेल कोशिकाओं का है ...हम सबका शरीर बहुत सारी कोशिकाओं से मिलकर बना है ...वायु प्रदूषण ...अशुद्ध खाना ...फल-सब्जियों में कीटानुनाशक का अत्यधिक प्रयोग .और मेहनत कम करना..आखिरकार इन सब के कारण ही तो जल्द बुढापा आ रहा है ...यह जिंदगी कितनी अनमोल है ...
''ताहिरा, ...ताहिरा, सो गई क्या?'' ममा बड़बड़ा रही है।
''नहीं, नहीं ममा।'' ताहिरा उठकर बैठ जाती है। फिर बाहर जाने लगती है।
''ताहिरा, ...कहां जा रही हो?'' ममा तकिए से सर उठाते हुए पूछती है।
''ममा, राबिया आंटी के पास जा रही हूं, उन्हें दवाखाना ले जाना है।'' दरवाजे की ओर बढ़ते हुए ताहिरा ने जवाब दिया।
''उफ्फ, यह लड़की कभी नहीं सुधरेगी। जिंदगी अनमोल है, उसी तरह जवानी भी तो अनमोल है। यही सोचकर ताहिरा अपने कैरियर पर ध्यान देती ...काश।''
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