ये किसका लहू है कौन मरा?
By Gulzar Hussain
इस तरह सवाल पूछने वाला शायर क्यों न नौजवानों के मन में बस जाएगा? ...इसी तरह स्कूल के दिनों में मेरे मन में भी साहिर लुधियानवी (Sahir Ludhianvi) बस गया था। उसकी नज़्म में उठते सवाल अंतर्मन में तूफान मचाने लगे थे। मुझे अक्सर यह लगा कि 'तल्खियाँ' या इससे इतर छपी उसकी नज़्म और ग़ज़ल सवाल ज्यादा पूछती हैं।
...कभी साहिर पूछता है -'ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है? कभी वह सवाल करता है- 'प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी, तू बता दे कि तुझे प्यार करूं या न करूं?
सवाल शायद उसकी शायरी का फलसफा था...
'तल्खियाँ' जब प्रकाशित हुई थी, तब साहिर कॉलेज का छात्र था और जब मेरे हाथ यह पुस्तक लगी तो मैंने 10वीं की परीक्षा पास की थी। तल्खियाँ के मुझ तक पहुंचने में दशकों के फासले हैं, लेकिन उसमें शामिल नज़्म मुझे अभी-अभी कही गई लगती है।
इंसानियत का परचम लहराने वाले शायर साहिर लुधियानवी अक्सर अन्याय के खिलाफ कलम उठाते रहे। वे लिखते हैं—
आज से ऐ मज़दूर-किसानों ! मेरे राग तुम्हारे हैं
फ़ाकाकश इंसानों ! मेरे जोग बिहाग तुम्हारे हैं
जब तक तुम भूके-नंगे हो, ये शोले खामोश न होंगे
जब तक बे-आराम हो तुम, ये नगमें राहत कोश न होंगे
मुझको इसका रंज नहीं है लोग मुझे फ़नकार न मानें
फ़िक्रों-सुखन के ताजिर मेरे शे’रों को अशआर न मानें
मेरा फ़न, मेरी उम्मीदें, आज से तुमको अर्पन हैं
आज से मेरे गीत तुम्हारे दुःख और सुख का दर्पन हैं
(चित्र: तल्खियाँ का कवर। यह पुस्तक मैंने मुज़फ्फरपुर में रविवार को लगने वाले पुस्तक मेले से खरीदी थी...)
साहिर लुधियानवी शुरू से ही क्रान्तिकारी मिज़ाज के शायर रहे हैं ।हर धर्म जाति,मजहब को अपनी शायरी में शामिल किया, महिलाओं, किसानों, मजदूरों,सब पर खुलकर लिखा । साहिर सच में कमाल कै शायर थे, उन्हें क्रान्तिकारी सलाम ✊🏻
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