वे देश को बगीचा बनाना चाहते थे

 

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By Gulzar Hussain

वे भारत को एकता -भाईचारे की खुशबू से गुलज़ार बगीचा बनाना चाहते थे....


हां, महात्मा गांधी देश को ऐसा बगीचा बनाना चाहते थे, जहां सभी तरह के फूल खिलें और लहलहाएं। वे भारत को प्यार के फूलों से ऐसे संवारना चाहते थे कि दुनिया का हर देश ऐसा ही बनना चाहे। देश के वंचितों और माइनॉरिटीज को खुशहाल देखने की यही उनकी जिद्दी दृष्टि उन्हें अन्य समकालीन नेताओं के बीच प्रभावशाली व्यक्ति बनाती है।

रूसी लेखक अ. गोरेव और जिम्यानीन की पुस्तक 'नेहरू' में गांधी के इस मानवतावादी सोच का जिक्र है। इस पुस्तक में लिखा है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद (1948) जब देश में साम्प्रदायिक दंगे फैल गए, तो गांधी ने बेहद गुस्से में नेहरू, आज़ाद और पटेल को बुलाया। फिर गांधी ने पटेल से पूछा कि रक्तपात बंद करवाने के लिए आप क्या कर रहे हैं? तब पटेल ने कह दिया कि दंगों की खबरें अतिरंजित हैं और ये बेबुनियाद शिकायतें हैं।

यह सुनकर गांधी स्तब्ध रह गए और बोले- "मैं कहीं चीन में नहीं, यहां दिल्ली में ही रहता हूं और मेरे आंख कान अभी दुरुस्त हैं। आप चाहते हैं कि मैं अपनी आंखों और कानों पर विश्वास न करूं और आपकी बात मान लूं कि मुस्लिमों की शिकायतें बेबुनियाद हैं, तो जाहिर है कि न मैं आपको कायल कर सकता हूं न आप मुझे?"

बाद में जब दंगे रोकने के लिए गांधी सोलहवें आमरण अनशन पर बैठ गए, तो नेहरू, आज़ाद और पटेल उनसे फिर मिलने आए और उनसे अनशन त्यागने की विनती की। लेकिन गांधी कहां, इतनी जल्दी मानने वाले थे। उन्हें जब तक अमन भाईचारे की खबर नहीं मिलती, वे टस से मस नहीं होते। उन्होंने अनशन तोड़ने की दो शर्तें रखीं कि दंगे तत्काल रोके जाएं और मुस्लिमों के तोड़े गए धर्मस्थलों का पुनर्निर्माण कराया जाए।

बाद में जब अनशन के दैरान गांधी की हालत बिगड़ने लगी, तो बड़ी संख्या में लोगों ने उनकी शर्तें मान ली। गांधी ने हिंदू और मुस्लिम प्रतिनिधियों से दंगा कभी न करने का प्रतिज्ञा पत्र भरवाया।

गांधी आज होते तो निस्संदेह दुनिया भर के नेता उनसे सीख लेते हुए अपने अपने नागरिकों से दंगे न करने का प्रतिज्ञा पत्र भरवाते ...पूरी दुनिया भारत जैसा होना चाहती ...कितना अच्छा होता कि पूरी दुनिया भारत की तरह ही धर्मनिरपेक्ष हो जाती ...न कहीं दंगे होते न नरसंहार!

दरअसल, गांधी का यह प्रसंग बताता है कि इंसाफ और मानवता को वे हमेशा प्राथमिकता देते थे। उनका कद इतना बड़ा था कि वे समकालीन दिग्गज नेताओं को भी सीख देते हुए तंज कस देते थे।

गांधी की मानवीय सेवा की जिद ही उनके व्यक्तित्व का आईना भी है। आज ऐसे जिद्दी नेताओं की बड़ी जरूरत है।

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