महाराष्‍ट्र के भगत सिंह थे कुर्बान हुसैन

शहीद कुर्बान हुसैन / फोटो : टीवी न्‍यूज से साभार


...वे भगत सिंह की तरह ही नौजवानों को जागरूक करने वाले लेख लिखा करते थे ...वे भी भगत सिंह की तरह ही न्‍यायप्रिय पत्रकार थे, लेकिन महाराष्‍ट्र के बड़े- बड़े नेता स्‍वतंत्रता दिवस पर झंडारोहण करते हुए शहीद कुर्बान हुसैन का एक बार नाम लेना तक भी भूल जाते हैं। 


By Gulzar Hussain

भगत सिंह की तरह ही कम उम्र में वतन के लिए फांसी के फंदे को चूमने वाले कुर्बान हुसैन को आज महाराष्‍ट्र के लोग ही भुला बैठे हैं। आज स्‍वतंत्रता दिवस पर मैं यदि यह कहना चाहता हूं कि हुसैन महाराष्‍ट्र के भगत सिंह थे, तो इसके पीछे केवल यह तर्क ही नहीं है कि वे भगत सिंह की तरह ही कम उम्र में वतन के लिए जान देने वाले क्रांतिकारी थे, बल्कि मैं यह कहना चाहता हूं कि वे भी भगत सिंह की तरह ही नौजवानों को जागरूक करने वाले लेख लिखा करते थे। वे भी भगत सिंह की तरह ही न्‍यायप्रिय पत्रकार थे।

1910 में सोलापुर में जन्‍में कुर्बान हुसैन महाराष्‍ट्र के भगत सिंह थे, लेकिन आप गौर कीजिएगा, तो पाइएगा कि महाराष्‍ट्र के बड़े- बड़े नेता स्‍वतंत्रता दिवस पर झंडारोहण करते हुए शहीद कुर्बान हुसैन का एक बार नाम लेना तक भी भूल जाते हैं।


वे बहुत कम उम्र में ही वे अखबार निकाल रहे थे, जो अंग्रेजी हुकूमत को फूटे आंख नहीं सुहा रही थी। उस दौरान मार्शल लॉ लगने के कारण उनका अखबार बंद हो गया। लेकिन कुर्बान हुसैन अंग्रेजों के जुल्‍म के आगे झुकने वाले नहीं थे, उन्‍होंने 1927 में गजनफर नामक एक नया अखबार निकाला और अपनी लेखनी से ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ा दी।

महाराष्‍ट्र के सोलापुर में पले- बढ़े कुर्बान हुसैन स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान नई पीढ़ी के हीरो थे। वे सोलापुर मजदूर यूनियन के अध्‍यक्ष भी थे और मजदूरों के अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करते रहते थे।

11 मई 1930 में जब गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया, तो कुर्बान हुसैन के साथ सैकड़ों युवक सोलापुर की सड़कों पर उतर पड़े। उस दौरान आजादी के तरानों से सोलापुर की हर गलियां गूंज उठी। परेशान होकर ब्रिटिश हुकूमत ने हुसैन सहित कई नौजवानों को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद 12 जनवरी 1931 को कुर्बान हुसैन को फांसी दे दी गई। उस समय वे केवल 22 वर्ष के थे।

Comments

  1. बिल्कुल सही कहा आपने कुर्बानी देना कोई आसान काम नहीं है इतनी छोटी सी उम्र में इतना बड़ा कदम भगत सिंह जैसे जज्बे वाले इन्सान ही कर सकते हैं लेकिन ऐसे देशभक्त को जिंदा रखना भी एक काम है जनता को उन्हें हमेशा जिन्दा रखना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं करने का नतीजा हम किसी हद तक भुगत रहे हैं और अगर अब भी नहीं संभले तो और भी भयानक रूप से हमारे सामने परिणाम होंगा। कुर्बान हुसैन कलम के भी सिपाही थे यही वजह खास रही होगी उन्हें जल्दी ही फांसी तक पहुंचने की।एक ओर भगत से मुलाकात के लिए क्रान्ति कारी सलाम।

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