रुकाे-रुको, प्रेमचंद के उपन्यास को मत जलाओ
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फोटो : 'तमस' फिल्म का दृश्य |
"...रुको! रुको! यह प्रेमचंद का उपन्यास है। इसे मत जलाओ!"
...क्या आपको याद है वह रोंगटे खड़े कर देने वाला दृश्य...भीष्म साहनी के उपन्यास 'तमस' पर बनी गोविंद निहलानी की फिल्म का वह दृश्य?
...दंगाईयों की भीड़ लाठी -भाला लिए हुए एक प्रोफेसर के घर में घुस आती है ...भीड़ सबसे पहले प्रोफेसर की किताबों पर हमला करती है ...उन्मादी भीड़ किताबों से भरे रैक को गिरा देती है।
भीड़ जब प्रोफेसर को एक ओर पटक देती है तो प्रोफेसर बोल उठता है- "...आप सब जानते हैं मुझे ...मैं प्रोफेसर हारून ...साहित्य पढ़ाता हूं..."
उन्मादी भीड़ उनका कुछ नहीं सुनती ...भीड़ किताबों पर पेट्रोल छिड़कने लगती है...
तब प्रोफेसर चीख पड़ता है- "...यह मेरे जीवन भर की पूंजी है...इन्हें मत जलाओ..."
प्रोफेसर एक पुस्तक उठाता है और दंगाइयों को दिखाते हुए कहता है- " यह देखो ...प्रेमचंद का उपन्यास ...इसे मत जलाओ..."
प्रोफेसर कुछ और किताब उठाते हुए भीड़ को साहित्यकारों के नाम याद दिलाता है, लेकिन भीड़ आखिरकार सारी पुस्तकें फूंक देती है।
बेहद ही संवेदनशील मुद्दे पर लिखा उपन्यास है तमस फिल्म देखी उपन्यास अभी तक हाथ नहीं लगा , धर्म,जाति किस तरह से एक इंसान को दूसरे इंसान से डरने को मजबूर कर देते हैं। कैसे जिन घरों महौलो को पूरे अधिकार से अपना कहते हैं उन्हें छोड़ कर भागना पड़ता है इस के अलावा भी इंसान कितना डरा हुआ होता है वो एक रास्ते के होते हुए दूसरै रास्ते का भी निर्माण करता है।जिसे चोर रास्ता कहते हैं
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