वह तो खुशबू है...फ़ीरोज़ अशरफ़ का यूं चले जाना
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Firoz Ashraf /Image: उनकी पुस्तक कवर से |
By Gulzar Hussain
वह तो खुशबू है, हवाओं में बिखर जाएगा...
हां, ...खुशबू को तो बिखरना ही है...कौन रोक सकता है इसे ...लेकिन कौन जानता था कि परवीन शाकिर के बारे में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'पाकिस्तान: समाज और संस्कृति' में 'खुशबू बिखर गई' शीर्षक से स्मृति-लेख लिखने वाले फ़ीरोज़ अशरफ़ भी परवीन की तरह ही सड़क दुर्घटना का शिकार होकर हमसे दूर हो जाएंगे।
हां। कल (7 जून) एक वाहन की चपेट में आकर फ़ीरोज़ साहब चल बसे। मुंबई सहित देश की पत्रकारिता जगत को इन्होंने अपनी लेखनी से बहुत समृद्ध किया। मुंबई से निकलने वाले अखबार 'नभाटा' से लेकर 'हमारा महानगर' तक में छपने वाले इनके कॉलम की खूब चर्चा हुई। 'हमारा महानगर' में तो वे हाल तक लिख रहे थे।
मेरे लिए खुशकिस्मती की बात थी कि जिन दिनों मुझे 'हमारा महानगर' में कॉलम 'प्रतिध्वनि' लिखने का मौका मिला था, तब फ़ीरोज़ साहब भी उसमें कॉलम लिख रहे थे। इससे उनको लगातार पढ़ने का मौका मिलता रहा और उनको जानने-समझने का भी मौका मिलता रहा।
वे जितना अधिक सामाजिक मुद्दों पर लिखते थे, उससे ज्यादा समाजसेवा करते थे। झोंपड़पट्टियों के गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के लिए उन्होंने खूब काम किया।
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उन्होंने अपनी पुस्तक देते समय पहले पन्ने पर मुझे दुआ दी थी |
...मुझसे जब भी उन्होंने बात की, तब एक पिता की तरह ही स्नेह जताया। आखिरी बार शायद 3-4 महीने पहले ही उनका फोन आया था। हाल चाल पूछने के बाद कहा, ' बेटा... जब भी फुर्सत मिले आ जाओ मेरे यहां... इधर भारत भर के मुस्लिमों और उनसे जुड़े मुद्दे पर खूब रिसर्च किया और लिखा है...."
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अशरफ़ साहब की चर्चित पुस्तक |
मैनें कहा था, " जैसे ही फुर्सत होती है, मैं आ जाऊंगा..." मैंने उन्हें बताया कि मुझे भी उनके दक्षिण भारत के मुसलमानों के बारे में लिखे लेख पढ़ने की बड़ी इच्छा थी।
लेकिन अफसोस! उस बातचीत के बाद मैं उनसे मिल न सका।
सलाम फ़ीरोज़ साहब! आपका लिखा हुआ हर शब्द इंसानियत की नींव में एक ईंट की तरह है।
हमेशा याद रहेगे वो,जो इस दुनिया में आएंगे
ReplyDeleteऔर इन्सानियत, प्रेम ,भाई -चारे का दीप जलाएंगे
रोशन कर के इस दुनिया को अपने विचारों से
वो जीवन जीने की एक नई राह दे जाएंगे
फ़ीरोज़ साहब को सलाम ।