जब वह कलम चलाता था, तो जार की सत्ता कांप जाती थी


मैक्सिम गोर्की

बेहद खतरनाक समय में मैक्सिम गोर्की ने कलम की ताकत से एक मिसाल कायम की।

By Gulzar Hussain
हां, उस कलम वाले का नाम मैक्सिम गोर्की था, जो रूस के सबसे संकटग्रस्त दिनों में अपनी कलम से न्याय की आवाज़ बुलंद कर रहा था। वह एक गरीब संदूक बनाने वाले का बेटा था। तमाम तरह के कष्टों में बचपन गुजारने वाले गोर्की को मजदूरों की दुर्दशा बेहद खटकती थी। वह जार की सत्ता तले रौंदी जा रही जनता को देखकर बेचैन हो उठा था...इसलिए वह सामाजिक न्याय के लिए लगातार कलम चला रहा था।

उसे कई बार सलाखों के पीछे डाला गया, लेकिन उसके बाद उसकी कलम की धार और तेज हो गई। जब1906 में उसने अपने उपन्यास "मां" में मिल मजदूर युवक पावेल की गाथा लिखी, तो फासिस्ट सत्ताधारी कांप गए। पावेल की मां उस दौर के हर क्रांतिकारी की आदर्श बन गईं। जुल्म करने वाले सत्ताधीशों की नींव कमजोर पड़ने लगी।

बेहद खतरनाक समय में मैक्सिम गोर्की ने कलम की ताकत से एक मिसाल कायम की। मानववाद के सजीव प्रतिमान गोर्की ने यह उदाहरण पेश किया कि अत्याचारी चाहे कितना भी बलवान क्यों न हो सत्य के प्रहार से वह झुक ही जाता है।

गोर्की का उपन्यास ‘मां’ कालजयी कृति है। यह रूस में जार शासन के समय की स्थिति को दर्शाने के साथ ही उस दौरान युवा वर्ग के गुस्‍से को भी अभिव्‍यक्‍त करता है। इसमें नायक पावेल और उसके साथियों के संघर्ष की दास्‍तान है। पावेल और उसके साथी रात भर क्रांतिकारी बातें करते रहते और पावेल की सीधी सादी मां चुपचाप उसे सुनती रहती...वे बर्फीली ठंड में रात के दौरान निकल पड़ते और मां उन्‍हें रोक नहीं पाती...लेकिन एक दिन मां सब समझ जाती है कि मेरा बेटा सच्‍चाई के पथ पर है और मानवता की मुक्ति की लड़ाई लड़ रहा है। फिर वह खुद क्रांतिकारी पर्चे लेकर सड़कों पर निकल पड़ती है।

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