उस हरफनमौला कलाकार को भुलाना आसान नहीं

वे हरफनमौला और मेहनती कलाकार थे।

हां, जब मैं कवि आज़ाद (Kavi Azad से मिला था, तो उनकी चुस्ती-फुर्ती देखकर दंग रह गया था। तब मैं नया-नया मुंबई आया ही था। एक दिन अंधेरी स्टेशन पर वे दिख गए। 
उन दिनों मुझे कोई काम-धाम तो था नहीं, इसलिए उनसे खूब गप्पे लड़ाने लगा। तब वे टीवी की दुनिया में जमे कलाकार थे। आज हर जगह उनका नाम कवि कुमार आज़ाद लिखा दिखाई देता है, लेकिन जब उन्होंने एक कागज के टुकड़े पर अपना मोबाइल नंबर मुझे दिया दिया था, तो उस पर कवि आज़ाद लिखा था, इसलिए उनका वही नाम जुबान पर चढ़ा है।  
अभिनय में खोए आज़ाद 


वे गजब के जिंदादिल इंसान थे। कंधे पर हाथ रख कर खूब ठहाके लगाते हुए किस्से सुनाते। बिहार से वे भी थे और मैं भी, इसलिए जोड़ी जम गई। वहीं, स्टेशन पर उन्होंने दो वड़ा पाव लिए और हम दोनों खाते हुए गप्प में मशगूल हो गए। उन्होंने बताया कि वे एक धांसू कहानी पर स्क्रिप्ट लिख रहे हैं और जल्द ही रामगोपाल वर्मा से मिलेंगे। तभी मैंने जाना कि एक एक्टर के अंदर एक लेखक हिलोरें ले रहा है।

वे एक दिन किसी प्रोड्यूसर से मिलने जा रहे थे। मैं भी साथ था। उस दिन मैंने देखा कि उन्होंने लिफ्ट का इंतज़ार नहीं किया और सीढ़ियों पर आगे बढ़ गए।
उन्होंने उन दिनों मेरा बहुत हौसला बढ़ाया। वे कहते थे कि जो भी लिखते हो, उसे लेकर प्रोड्यूसर या डायरेक्टर से मिलने में संकोच मत करो। कामयाबी हर हाल में मिलेगी।

बाद में हम दोनों अपने अपने काम में व्यस्त हो गए, लेकिन उनके निराले अंदाज को कभी भुला नहीं पाया।

वे 9 जुलाई, 2018 को हम सबको छोड़ कर चले गए। उनकी स्मृति को नमन!
-गुलज़ार हुसैन 


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