-शमीमा हुसैन की लघुकथा : मौसम

आज सुबह से ही सुल्ताना की मूड खराब है। आज जुमा का दिन है। सुल्ताना धर्म-कर्म वाली औरत है। सुबह से रात ईशा की नमाज अदा करने तक वह पूरे दिन मशीन की तरह काम करती है। ईशा की नमाज अदा करने के बाद वह इतनी थक जाती है कि पानी पीने तक का होश नहीं रहता है। सुल्ताना की तीन बहुएं हैं। तीनों अलग-अलग हैं, पर आंगन एक ही है। घर भी तीनों का एक ही आंगन में है। सुल्ताना की चाहत थी कि तीनों साथ में रहें। तीनों बहुओं ने बगावत कर दी नहीं-नहीं, इकट्ठा नही रहना है। सुल्ताना भी आसानी से हार मान गई। उम्र के साथ अक्ल भी पैनी हो गई थी। बहू के मायके के संस्कार भी तो काम आने चाहिए। तीनों अलग हो गए या। अब झमेला खड़ा हुआ। सुल्ताना कहां रहेगी। किसके साथ रहेगी। छोटे बेटे ने ऐलान कर दिया की अम्मी मेरे साथ रहेगी। पर सुल्ताना ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। तीन दिनों तक सुल्ताना ने कुछ नहीं खाया। तीन दिन बाद सुल्ताना ने तीनों बहुओं-बेटों को जमा करके फिर से साथ रहने के लिए समझाया, पर बहुएं नहीं मानीं। सुल्ताना ने ऐलान कर दिया की तीनों के यहां एक-एक महीना रहूंगी। बात हो गई, तो तीनों बहुएं खुश हो गईं। पर सुल्ताना अंदर ही अंदर कट कर रह गई। सुल्ताना जिस साथ बहू के साथ एक महीना रहती, उसके साथ उसका काम भी करती थी, लेकिन तीनों बहुएं उसे काम करने से रोकती थीं। सुल्ताना सोचती थी कि जब हाथ-पैर चल रहा हैं, तब तक करती हूं। एक दिन तो थक ही जाना है, मर ही जाना है। अपनी जवानी सुल्ताना ने सीता हाई स्कूल को दे दिया था। उसे याद नही कभी उसने अपना समय बर्बाद किया हो। सुल्ताना समय की बहुत कद्र करती थी। सुल्ताना का मानना था कि कुदरत के सभी काम समय पर ही पूरे होते हैं। जैसे सूरज और चांद का निकलना। फसलें खेतो में समय पर ही पकती और लहलहाती हैं। सुल्ताना अपने तीनों बेटों को समय की कीमत बचपन से समझा रही है। दो समझ गया है। एक नहीं समझता या नहीं समझने का नाटक करता। मौसम परिवर्तन भी समय पर होता है। समय पर ही वृक्षों पर फल-फूल खिलते हैं। सभी मूल्यवान वस्तुओं में से समय सबसे अधिक मूल्यवान है। दौलत अगर एक बार चली गई, तो फिर से पाई जा सकती है पर समय दोबारा नहीं पा सकते। समय पर काम करने वाला हमेशा सुखी रहता है। इतनी सारी बातें उसे समझ में नही आती है। सुल्ताना को बहुत फिक्र रहती है। वाजिद कब समझेगा। दोनों भाइयों ने घर बनाया। गाड़ी ली। दोनों आगे बढ़ रहे हैं। इस बेचारे का घर भी नही बना है। मां को बहुत दुःख होता है। यह लड़का कब समझेगा। दोनो बेटे आगे बढ़ रहे हैं। इस बात की खुशी होती है। वाजिद सब मामले में अच्छा है, लेकिन समय बहुत बर्बाद करता है। समय की कद्र नहीं करता हैं। मां दुःखी है। बेटे को इस बात की खबर नही है। -शमीमा हुसैन

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