लघुकथा: ओवन
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Photo: Gulzar Hussain |
लघुकथा: शमीमा हुसैन
आज बच्चों के टिफिन में, फिर से पराठा जैम रखा गया था। स्कूल से दोनों बहनें आ गई थीं। अब आप सवाल करेंगे कौन दोनों बहन? जुलेखा के बेटी है नाजिया और साजिया। दोनों बहनें एक ही चीज को ही पसंद करती थी। एक ही तरह का खाना ...एक ही तरह का कपड़ा। दोनों का हर काम एक ही तरह का होता था। उस दिन जुलेखा टिफिन धोने के लिए खोली तो देखा, दोनों के ही टिफिन में पराठा, जैम जस की तस पड़ी थी।
जुलेखा ने जोर से आवाज दी, ''साजिया, नाजिया दोनों इधर आओ।''
''...आई ममा।'' कहती हुई साजिया दौड़कर आई और पूछा, ''क्या हुआ ममा?''
''नाजिया कहां है?'' गुस्से में मां ने पूछा।
''ममा, आपी दुकान गई हैं।'' साजिया ने सहमते हुए जवाब दिया।
ममी ने चेहरे पर लटक आए बालों को एक तरफ सरकाते हुए कहा, ''सुन लो, आज तुम दोनों को अच्छे से पीटूंगी। ये टिफिन की बर्बादी अब सहा नहीं जाता...तुम दोनों को कुछ समझ में आता भी है कि नहीं।''
तभी ऐन समय पर दादी आ गई और साजिया पिटाई खाने से बच गई। मां के सामने दोनों बच्चियों की बोलती बंद हो जाती थी। उस समय जान बचा कर साजिया खिसक गई। लेकिन नाजिया के दुकान से आने के बाद फिर से मां ने दोनों को आवाज दी। दोनों आ गई और मां का मुंह देखे जा रही थी। इतने में पड़ोस में रहने वाली सरिता आंटी आ गई। दोनों बहनें फिर बच गईं। दोनों की किस्मत अच्छी है।
मां का गुस्सा ठंडा हो गया था। वह सरिता आंटी से बातें करने लगी थी।
सरिता ने कहा, ''आज शनिवार बाजार चलोगी जुलेखा? सामान सस्ते में मिल जाता है।''
मां ने कहा, ''अरे हां भाभी। उड़िया भाभी भी जाने को बोल रही थी। अभी चलती हूं,। साग-भाजी तो अच्छे दामों में मिल ही जाता है।''
सरिता ने कहा, ''अरे उसे छोड़ो जुलेखा, वह क्या जाएगी, वह तो अमीर है।''
''पूछ कर देखती हूं?'' जुलेखा ने मुस्कुराते हुए है।
सरिता ने कहा, ''ठीक है, पूछ ही लो जरा।''
जुलेखा पूछने गई, तो उड़िया भाभी भी साथ हो ली। तीनों सहेलियां बाजार चली गईं। मां के जाने बाद दोनों बहन बातें करने लगीं। साजिया ने कहा, ''तूने खाना छोड़ दिया, तब मैं भी छोड़ी दी।
दादी ने यह सुना तो टोका, ''तुम लोग रोज रोज टिफिन नहीं खाती हो। खराब बात है। खाना फेंकना गुनाह है।''
''दादी, मम्मी रोज पराठा देती है। डेली एक ही तरह का खाना नहीं खाया जाता है।'' साजिया ने कहा।
दादी बोली, ''क्या बोलती हो लड़की। तुम दोनों के टिफिन में कभी पोहा, कभी डोसा, कभी चना का हलवा भी तो तेरी मां रख ही देती है।''
''हूं ... लेकिन वह सब कोई नहीं खाता हैं दादी। जूही, लता, रीना टिफिन में रोज-रोज पिज्जा, केक, पेस्टी, कुकी लाती है। वैसा टिफिन हम लोग भी ले जा सकते हैं। बस मम्मी ओवन खरीद ले। हम सब कई महीनों से बोल रहे हैं, की ओवन खरीद ले, लेकिन मम्मी सुने तब न।'' नाजिया ने कहा।
यह सब सुनकर दादी मुंह बिचकाते हुए वहां से चली गई।
पापा का जुमला दोनों बच्चियों को अच्छी तरह से याद हैं।
साजिया ने नाजिया से कहा, ''आज मार खाने से बच गई हूं।''
''कब?''
''जब तू दुकान गई थी। आज मम्मी बहुत गुस्से में थी।''
नाजिया बोली, ''मैं तब तक डब्बा नहीं खाऊंगी, जब तक ओवन नही खरीदेगे। संडे को हमलोग नहाना-खाना नहीं करेंगे। तब पापा ओवन खरीदेंगे। जानती हो, पापा तैयार हैं, लेकिन मम्मी का मन नहीं हैं।''
आज शनिवार की रात है। दोनों बहनें योजना बना रही हैं कि कल संडे है और बिस्तर से उठना नहीं है। न नहाना है और न खाना है।
संडे को दोनों बहनें आराम से जमीन में चटाई पर चिपक कर सोती रहीं। मम्मी ने धीरे से सर पर हाथ फेरकर कहा, ''अरे उठो। सुबह हो गई। मैं बाजार जा रही हूं।''
मम्मी चली गई, तो पापा ने आवाज दिया, ''उठो नाजिया-साजिया नाश्ता करो।''
नाजिया जल्दी से बोली, ''आज हम लोग नही उठेंगी।''
''क्यों?'' पापा ने हैरत से पूछा।
साजिया बोली, ''आज ओवन खरीदेंगे तो उठ जाती हूं।''
पापा ने मुस्कुराते हुए कहा, ''दोनों नहा कर आओ। आज संडे है। आज हम सब सिनेमा देखने जाएंगे।''
''नहीं पापा ...मूवी नहीं। आज ओवन खरीदना है।'' साजिया ने कहा, तो नाजिया ने भी मुंह हिलाया।
पापा बच्चियों का ध्यान बंटाना चाहते थे, लेकिन दोनों बहनें पक्का मन बना चुकी थी कि आज ओवन खरीदना है। बच्चियां जानती थीं कि पापा के सामने जिद, नाटक चलेगा, लेकिन मम्मी के सामने कुछ भी चलने वाला नहीं हैं।
दोनों बच्चियां जब खूब जिद करने लगीं तो पापा ने कहा, '' अच्छा, मम्मी को आने दो बाजार से फिर बात करता हूं।'' दोनों बहनें उठ गईं। मम्मी बाजार से आकर लंच बनाने में जुट गईं, तब-तक साजिया-नाजिया नहाकर आ गई। पापा ने दोनो की पूरे सप्ताह का होमवर्क चेक किया। होमवर्क तो दोनों ने खूब अच्छे से किया था। पापा के चेहरे पर खुशी झलक रही थी। नाजिया चुपके से बोली, ''पापा, मम्मी से बात तो कीजिए।
''अरे नहीं बाबा... वह अभी काम में लगी है।'' पापा ने अपना सिर हिलाते हुए कहा।
सब ने एक साथ लंच किया। लंच के बाद पापा ने कहा कि आज केक भी खाना है। उन्होंने नाजिया से कहा कि केक ले आओ। नाजिया ने पैसे मांगे, तो पापा ने कहा कि पैसा मम्मी से मांग लो। मम्मी दूर से यह सब सुन रही थी, इसलिए जब नाजिया केक के पैसे मांगने मम्मी के पास गई तो मम्मी ने बिना कुछ बोले 40 रुपए अपने पर्स से निकाल कर दे दिए। इस पर नाजिया ने कहा कि सबसे छोटा केक भी 300 रुपए से कम में नहीं आएगा। नाजिया ने कहा कि मम्मी और पैसे दो, तो मम्मी ने साफ-साफ कह दिया कि केक का कटा टुकड़ा इतने में दे देगा, वही लेकर आओ।
पापा यह सब सुन रहे थे। उन्होंने कहा कि इतना कम केक में हम चारों कैसे खाएंगे। इस पर जुलेखा ने कहा कि दो केक के टुकड़े मंगा लेते हैं। इस पर पापा ने कहा कि इतने रेसिपी बनाती हो, केक भी बना दिया करो। जुलेखा ने कहा कि केक तो अच्छा बन ही नहीं पाता है।
इस पर पापा, साजिया और नाजिया तीनों ने एक साथ बोल पड़े, '' तो क्यों न ओवन खरीद लें।''
अब जुलेखा को यह समझते देर न लगी कि केक का नाटक क्यों रचा गया था।
जुलेखा ने कहा, ''ओवन मिडल और अपर क्लास वालों की जरूरत है। मैं क्यों खरीदूं।
पापा ने तुरंत जवाब दिया, '' अपर और मिडल बाद में करना, चलो रिलायंस डिजिटल, वहां ओवन सस्ता मिल रहा है।''
''क्या आप भी, आपका दिमाग काम नहीं करता, जो बच्चों के साथ-साथ बच्चे बन गए।'' मम्मी ने कहा और बच्चियों की तरफ घूर कर देखा, मानो यह सब उन्हीं के कारण हो रहा हो। बच्चियां सहम गईं।
पापा ने कहा, '' 28 लीटर वाला ओवन ले लेते हैं।
''फिर वही बात। मुझे अब गुस्सा आ रहा है। अभी यह नीड नहीं है। जो नीड है उसे खरीदना चाहिए।'' बालों को झटकते हुए मम्मी ने कहा।
बच्चियां चुपचाप यह सब सुन रही थीं।
पापा फिर बोल पड़े, ''सात हजार में ओटीजी ओवन आता हैं। यह सस्ता हो गया है।''
''सात हजार मेरे लिए बड़ी बात है।'' जुलेखा गुस्से में तन कर बोली।
इसके बाद दोनों बच्चियां जिद करने लगीं, ''...मम्मी सुनो ...चलो न मम्मी।''
जुलेखा को पति पर गुस्सा आ रहा था। उसने अपने पति से कहा, ''नादान बच्चे हैं तो जिद करेंगे ही, पर आप कैसे बोल रहे हैं। आवश्यकता नहीं है ...पिज़्ज़ा ...कुकीज केक ...ग्रील चिकन ...ब्रेड ...तंदूरी ...चिकन पनीर ...टिक्का ...पेस्टी सब बनाने का बजट अपना नहीं है।
पापा इतने पर भी बोले, '' छोड़ो यह सब, चलो मार्ट में। खरीद लेंगे केवल ओवन। और कुछ नहीं। बस।''
जुलेखा ने गुस्से में भरकर कहा, ''क्या-क्या सस्ता हो गया है। फ्रीज, टीवी, अलमारी, माइक्रोवेव, एलसीडी टीवी? क्या रोटी, कपड़ा और मकान सस्ता हो गया है? इस मायानगरी में मैं अपने घर के लिए तरस रही हूं। मेरे लिए 7000 रकम बड़ी रकम है। खोली खरीदने के लिए न जाने कितने बरस बरस लग जाते हैं। क्या छह, सात मार्ट वाले मिलकर हम बेघरों के लिए सस्ते घर का स्कीम ला सकते हैं?''
सभी गौर से जुलेखा के चेहरे को देख रहे थे।
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