सौमित्र चटर्जी, जिनकी फिल्में बार-बार देखने का मन करता है




अपूर संसार में उनका ऐसा दिल को छू लेने वाला अभिनय है कि कोई उसकी जगह पर कोई दूसरा अभिनेता का नाम लेने को कहे, तो मुझसे किसी का नाम न लिया जाए। यहां, उनकी आंखों में एक खालीपन है, वे अपनी पत्नी की तरफ अपलक निहारते हैं। उफ़्फ़। एक दृश्य में वे पूछते हैं- ‘..तोमार चोखे की आछे बोलो तो ?’ एक-एक संवाद को इतनी संजीदगी से कोई कैसे जी सकता है भला। यह तो एकदम जादुई अभिनय है। इसी फिल्म में बाद में अपने नन्हे बेटे के साथ उनका संवाद तो इतना भावुक बन पड़ा है कि पूछिए मत।



इस समय मैं जब भी जरा ठहर कर यह सोचता हूं कि भारतीय फिल्मों का कौन सा ऐसा अभिनेता है, जिसका अभिनय मेरे दिल को छू लेता है ...जिसकी फिल्में अब भी शिद्दत से देखने का मन करता है, तो वह नाम है सौमित्र चटर्जी का। इस नाम के सामने मैं न जाने क्यों हिंदी और कुछेक हॉलीवुड फिल्मों के दिग्गज अभिनेताओं के नाम भूल-सा जाता हूं।

मैं अपने बाबा को आज भी शुक्रिया कहना चाहता हूं कि उन्होंने मुझे बचपन में टीवी पर सौमित्र चटर्जी की बेहतरीन फिल्में देखने की छूट दी। बाद में बड़े होने पर मैंने फिर से उनकी फिल्मों को कई बार देखा।

सत्यजीत रे के निर्देशन में बनी कई बेहतरीन फिल्में जिनमें -अपूर संसार, गणशत्रु सहित कई नाम हैं। एक और उनकी उल्लेखनीय फिल्म है-आतंक। यह रे निर्देशित फिल्म नहीं है, लेकिन इसमें कितना जोरदार अभिनय है उनका। एक शिक्षक जो सत्य और न्याय के लिए बेचैन है ... दरअसल उन्होंने एक मर्डर होता देख लिया है अपनी आखों के सामने। खूनी कोई और नहीं उनका ही एक छात्र है, लेकिन तमाम धमकियों के बावजूद वे चुप नहीं बैठते, वे न्याय के लिए आवाज उठाते हैं और उसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ती है।

अपूर संसार में उनका ऐसा दिल को छू लेने वाला अभिनय है कि कोई उसकी जगह पर कोई दूसरा अभिनेता का नाम लेने को कहे, तो मुझसे किसी का नाम न लिया जाए। यहां, उनकी आंखों में एक खालीपन है, वे अपनी पत्नी की तरफ अपलक निहारते हैं। उफ़्फ़। एक दृश्य में वे पूछते हैं- ‘..तोमार चोखे की आछे बोलो तो ?’ एक-एक संवाद को इतनी संजीदगी से कोई कैसे जी सकता है भला। यह तो एकदम जादुई अभिनय है। इसी फिल्म में बाद में अपने नन्हे बेटे के साथ उनका संवाद तो इतना भावुक बन पड़ा है कि पूछिए मत।

गणशत्रु में वे एक बुद्धिजीवी डॉक्टर हैं, जो समाज में गहरे पैठे अंधविश्वास की पोल खोलता है और सभी का शत्रु बन जाता है। उनका अभिनय इतना सटीक है कि कई बार लगता है कि उठकर उनसे कहूं कि आपके साथ हूं दादा...इस फिल्म में उनकी भूमिका को कभी भुला पाना मुश्किल है। इस फिल्म के बारे में बाद में कभी विस्तार से लिखूंगा।
(Gulzar Hussain : फेसबुक पोस्ट से )

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