राहुल गांधी को मिल गया 'अलादीन का चिराग'?
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भारत जोड़ो यात्रा का एक दृश्य/ फोटो : सोशल मीडिया से साभार |
निस्संदेह भारत जोड़ो यात्रा (#BharatJodoYatra) से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की छवि बदली है। इसे राहुल के समर्थक ही नहीं दबी जुबान से राहुल गांधी के विरोधी भी मान रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस यात्रा से क्या राहुल गांधी कांग्रेस के दिन बदल पाएंगे। यह तो साफ है कि भारत जोड़ो यात्रा शुरू होने पर इसकी सफलता पर संदेह किया जा रहा था, लेकिन इस यात्रा को जितना समर्थन मिला, वह कांग्रेस पार्टी के लिए किसी बड़े चमत्कार से कम नहीं है। कन्या कुमारी से चली यात्रा में गांवों-कस्बों के गरीब-गुरबे, स्त्रियां और मजदूर ही नहीं जुड़े, बल्कि फिल्म और समाजसेवा से जुड़े चर्चित चेहरे भी जुड़े और इसकी चर्चा भी खूब हुई। अभिनेता सुशांत सिंह से लेकर कमल हासन जैसे दिग्गज अभिनेता भी इसमें शामिल हुए। अभिनेता-अभिनेत्रियों के अलावा पूर्व आरबीआई अध्यक्ष रघुराम राजन के शामिल होने की चर्चा भी खूब रही। सत्ताधारी भाजपा इन चेहरों की आलोचना भी करती नजर आई, जिससे राजनीतिक विश्लेषकों को यह लगा कि यह एक तरह से यात्रा की सफलता ही है।
खैर यहां मुद्दा यह नहीं है कि किस स्टार के जुड़ने से राहुल को कितना फायदा होगा, क्योंकि राहुल की पहले की छवि भी राजनीति में युवा स्टार की ही रही है, लेकिन इस छवि ने उनको कभी फायदा नहीं पहुंचाया है। भाजपा की तरफ से उन्हें राजकुमार भी कहा जाता रहा है, जिससे उनको बहुत घाटा भी हुआ है। लेकिन इस यात्रा ने राहुल गांधी को अलग तरह से मांजा है। राहुल गांधी की बढ़ी दाढ़ी की तरह ही, उनमें वैचारिक परिपक्वता भी आई है। वे रोजगार, भाईचारे और न्याय की बात को पहले से अधिक शिद्दत से उठाते देखे गए। उन्होंने विदेश नीति पर भी ऐसे मुद्दे उठाए, जो भाजपाईयों को तीर की तरह चुभे। कुल मिलाकर राहुल में आए तेवर ने कांग्रेसियों में नई जान फूंक दी है।
ऐसे माहौल में कांग्रेस को लग रहा है कि वे भाजपा को इस उत्साह बल के सहारे हरा देंगे। तो क्या सचमुच राहुल गांधी के हाथ में कोई 'अलादीन का चिराग' हाथ लग गया है, जिसे घिसते ही कांगेस को विजेता बनाने वाला जिन प्रकट हो जाएगा? यहां पहली बात तो यह है कि राहुल इस यात्रा में जो मूल विचार लिए हैं, वे कांग्रेस के पुराने हथियार हैं। इन्हीं एकता, सत्य और न्याय के वैचारिक हथियार के सहारे कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी और बड़ी कामयाबी हासिल की थी। महात्मा गांधी से अपनी तुलना करने वाले कांग्रेसियों पर राहुल गांधी भले नाराज हो गए हों, लेकिन वे इस यात्रा में महात्मा गांधी के सिद्धांतों के सहारे ही इस यात्रा को सफलता दिलवा पा रहे हैं। हां, यह जरूर है उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों को नए संदर्भों और नए राजनीतिक परिदृश्य में बड़ी ही मौलिक तरीके से उतारा है। उनके इस कार्य की अवश्य सराहना की जानी चाहिए।
दरअसल, कांग्रेसी जिसे राहुल के हाथों में अलादीन का चिराग समझ रहे हैं, वह एकता-भाईचारा लाने का वादा ही है। राहुल गांधी की यही लाइन इस पार्टी को भाजपा से विपरीत ध्रुव पर ले जाता है। इधर बड़ी संख्या में लोगों ने यह महसूस किया है कि देश में एकता-भाईचारा बहुत जरूरी है, यह न केवल रोजी-रोटी के लिए जरूरी है, बल्कि समाज में शांति के लिए भी आवश्यक है। इधर, राहुल ने भी खुलकर हिंदू-मुस्लिम पॉलिटिक्स का विरोध करना शुरू कर दिया है, जो गैर भाजपा समर्थकों के लिए उत्साह सा ले आया है। लोग यह मानने लगे हैं कि राहुल इन जरूरी मुद्दों को उठाकर किसानों, मजदूरों और माइनॉरिटीज के सामने जीने की राह बनाने के लिए निस्वार्थ भाव से काम करना चाहते हैं।
इतना तो माना जा सकता है कि भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल के हाथों में अलादीन का चिराग सौंप दिया है, लेकिन अब देखना है कि राहुल गांधी इस चिराग को सही समय पर घिस कर जिन निकाल पाते हैं या नहीं?
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