हिटलर के तानाशाह बनने की कहानी
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Photo by Mathew Browne on Unsplash (प्रतीकात्मक फोटो) |
इस फिल्म (टीवी सीरीज) को देखकर मन में इतनी हलचल मची हुई है कि कुछ लिखे बिना रहा नहीं जा रहा...
दरअसल, इस फिल्म को हर पत्रकार और लेखक को जरूर देखना चाहिए। ऐसा मैं क्यों कह रहा हूं, इसे यहां अंत में बताऊंगा।
...सबसे पहले तो मैं यह बता दूं कि 2003 में बनी इस कनाडियन सीरीज Hitler: The Rise of Evil की सबसे बड़ी खासियत है इसके मुख्य किरदार निभाने वाले रॉबर्ट कर्लेले (Robert Carlyle) का अभिनय। हिटलर के शैतान के रूप में निरंतर परिवर्तित होते किरदार को जी पाना आसान नहीं था। रॉबर्ट ने हिटलर के क्रोध में कांपते चेहरे ...घृणा से फूलते-पिचकते उसके नथुने को बखूबी अपने अभिनय में ढाला है। हिटलर जब यहूदियों को जड़ से मिटा देने की बात कहता है, तो उसकी आंखों में साम्प्रदायिकता की भेड़ियानुमा चमक जो आ जाती है, उसे भी राबर्ट सामने लाता है।
खैर, यह फिल्म हर पत्रकार और लेखक को इसलिए देखनी चाहिए, क्योंकि इस फिल्म की रूपरेखा या कहें कथा ही एक जर्मन पत्रकार-इतिहासकार Fritz Gerlich की रिपोर्टों पर आधारित है। इस फिल्म में Fritz की भूमिका मैथ्यू ने बड़ी शिद्दत से निभाई है। यह निडर पत्रकार हिटलर के खूनी इरादों को भांप जाता है, और अपने अखबार में उसे प्रमुखता से छापता है। इससे हिटलर की नाजी पार्टी आग- बबूला हो जाती है, लेकिन तमाम छल और दमन झेलते हुए पत्रकार हिटलर की पोल खोलता चला जाता है। Fritz की पत्नी उसे बहुत समझाती है कि हिटलर उसे मार देगा, लेकिन वह कहता है कि सच लिखना एक पत्रकार का काम है।
आखिरकार हिटलर अपनी घोर साम्प्रदायिक नफरत का जाल बिछाते हुए सत्ता में मजबूत होता चला जाता है और निडर पत्रकार Fritz को गिरफ्तार कर लेता है। फिर उसे भी कैंप में कैदकर आखिरकार उसकी हत्या कर देता है।
Christian Duguay के निर्देशन में बनी इस फिल्म को इसलिए भी देखना चाहिए, ताकि दुनिया में कहीं भी कोई दूसरा हिटलर पनपने न पाए।
बिल्कुल अलग निरंकुशता को देखना और समझना है, सम्प्रदायिक ताकतों से बचना है, दुनिया में इंसानियत को बचाना है और प्रेम, मोहब्बत,अमन चैन की खूबसूरत दुनिया बनानी है तो एक बार हिटलरशाही को जरुर दिखाना , समझना बनता है।
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