Jay Bhim : शोषण का वास्तविक रूप
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Photo courtesy : social media |
बहुत दिनों बाद एक ऐसी फिल्म देखी, जिसमें वंचित जनता पर होने वाले अन्याय और शोषण का वास्तविक रूप दिखाई दिया।
हां, यह सच है कि 'जय भीम' (Jay Bhim) देखते हुए मैं तनिक भी नहीं चौंका, क्योंकि मैंने बिहार के दलितों और महादलितों का जीवन बहुत नजदीक से देखा है। बिहार में संर्घषशील मुसहर समुदाय के दुख -तकलीफ झेलने वाले लोगों से मिलते जुलते इस फिल्म के पात्रों की दुनिया अनजान या काल्पिनक तो नहीं है, लेकिन फिल्म में इस तरह की कहानी का आना नया और विद्रोह से भरा हुआ है।
हिन्दी पट्टी की फिल्में तो इस तरह से बनती ही नहीं हैं और बनती भी हैं, तो वे कहानी को बैलेंस करने के चक्कर में मूल मकसद से भटकी हुई लगती हैं। हां, एक हिन्दी फिल्म का नाम याद आ रहा है-'पार'। गौतम घोष की इस फिल्म में नसीर और
शबाना आजमी ने बिहार के दलित के संघर्ष को बखूबी निभाया था। इस फिल्म में जुल्म की हद दिखाई गई थी, लेकिन आशा की किरण नहीं थी ...इससे बच निकलने के लिए कहीं कोई मार्ग नहीं था, लेकिन 'जय भीम' फिल्म में अन्याय और दमन से बच निकलने का एक मार्ग भी है। बाबासाहेब आंबेडकर के बताए रास्ते पर चलने का मार्ग ...सत्य और न्याय का मार्ग...
मुझे फिल्म में कार्ल मार्क्स, आंबेडकर और पेरियार की तस्वीरों को एक साथ देखना भी बेहद क्रांतिकारी लगा। आशा की किरण यहीं से तो निकलेगी।
(Gulzar Hussain/ FB post)
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