दो किताबों की बात



By Gulzar Hussain

मीठी आवाज में गाए गए गाने 'साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल' और 'गांधी' फिल्म को बचपन में टीवी पर देखने के बाद गांधी को जानने-समझने में इन दो किताबों की मेरे जीवन में बड़ी भूमिका रही है - 'सत्य के प्रयोग' और 'दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास'।

सत्य के प्रयोग में जो गांधी (Mahatma Gandhi)हैं, वे इतने आत्म सयंमित हैं ...इतने कठोर अनुशासित हैं कि जिन्हें जानकर कोई भी बच्चा मन ही मन कह देगा कि अरे ऐसा कैसे बना जा सकता है भला। यह तो सच है कि गांधी को जानकर भी यह विश्वास करना कठिन हो जाता है कि इस तरह का कोई व्यक्ति गुजरात, मुम्बई और मुज़फ़्फ़रपुर की राहों पर चलता-फिरता रहा है।

कौन यकीन करेगा कि शाकाहार को लेकर वे जितने दृढ़ निश्चयी थे, उतने ही वे मांसाहार करने वाले लोगों के खाने पीने के अधिकारों की रक्षा करने में भी मुखर थे। 'दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास' के टालस्टाय फार्म पाठ में वे फूड फ्रीडम के प्रबल पक्षधर नजर आते हैं। टालस्टाय फार्म में जो लोग रहने वाले थे उनमें हिंदू, मुस्लिम, पारसी और ईसाई सभी थे। सभी का आहार अलग अलग था। गांधी शाकाहारी थे, लेकिन वे सोचने लगे कि क्या मुझे ऐसी स्थिति में सभी पर अपने शाकाहारी वृत्ति को थोपना चाहिए...फिर उन्होंने लिखा- 'इन परिस्थितियों में मुझे अपना धर्म स्पष्ट रूप से समझ में आ गया।' फिर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सभी को अपने रहन सहन के हिसाब से मनपसंद आहार की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
दरअसल, इंसानियत, सद्भावना और सत्य ही उनकी राह थी।
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