कुसुम, जो एक वर्ष तक 'लॉकडाउन' में रही




Drawing: Gulzar Hussain

By Gulzar Hussain
कोरोना आपदा के दौरान लॉकडाउन का दुख झेल रहे हम लोगों को क्या प्रेमचंद की कहानी 'कुसुम' याद है?
कुसुम भी एक वर्ष तक लॉकडाउन जैसी त्रासदी झेलती रही थी। वह माता-पिता की इकलौती संतान थी ...लाड़-प्यार में पली... पिता ने कभी उसे फूल की छड़ी से भी नहीं छुआ था, लेकिन जब उसकी शादी हुई, तो उसके पति ने उसे ऐसी तकलीफ में डाल दिया, जिसका कोई उपाय किसी के पास न था।

शादी के पहले दिन से ही उसका पति उससे बात करना तो दूर उसके पास फटकता भी नहीं था। पति के प्रेम भरे शब्द या सुहागरात का अनमोल पल उसके लिए कल्पना ही रहा। भीषण उपेक्षा की शिकार होकर कुसुम मायके आ गई।

कुसुम ने लगातार अपने पति को कई खत लिखे, लेकिन कोई उत्तर नहीं आया। उसने पूछा कि सेवा करने का एक मौका दीजिए ...आखिर क्या भूल हुई, कुछ तो बताइए?...क्या कोई दूसरी आपकी जिंदगी में आ गई? लेकिन पति की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कुसुम घर में बंद घुटती रही और रो-रोकर टीबी मरीज की तरह सूख कर कांटा हो गई। ...न जाने किस अपराधबोध में वह मौत की तरफ कदम बढ़ाने लगती है।

लेकिन कहानी का चरमोत्कर्ष तब है, जब कुसुम को यह पता चलता है कि उसका पति घृणा क्यों कर रहा था। दरअसल उसका पति खूब दहेज लेने के बावजूद कुसुम के पिता के पैसे से इंग्लैंड जाकर पढ़ाई करने का इच्छुक था। यह बात उसने शादी से पहले ही कुसुम के पिता से कही थी, लेकिन उन्होंने बाद में इस पर ध्यान नहीं दिया। बस इसी कारण उसने कुसुम से दूरी बना ली और साल भर तक यातना दी।

यह सच्चाई कुसुम को एक चोट की तरह लगती है...इस सच्चाई से उसकी जीवन शैली बदल जाती है ...उसमें स्वाभिमान जाग जाता है। कुसुम के पिता दामाद को रुपए देने को तैयार हो जाते हैं, तो कुसुम एकदम से मना कर देती है।

कुसुम मां से कहती है- "...जो आदमी इतना स्वार्थी और दम्भी है, उसके साथ मेरा निर्वाह नहीं हो सकता। मैंने स्वतंत्र रहने का निश्चय कर लिया है।"

धीरे-धीरे उसके पीले चेहरे पर स्वाभिमान और स्वतंत्रता की लालिमा छा जाती है।

प्रेमचंद ने पति का प्रेम- अपनापन पाने को तरसती एक युवती के अचानक दृढ़ निश्चय वाली स्वाभिमानी युवती में परिवर्तित हो जाने की अनोखी कहानी लिखी है।
अगर आपने यह कहानी नहीं पढ़ी है, तो आज ही पढ़ लीजिए।

Comments

  1. प्रेम चंद जी की हर कहानी अपने आप में समाज के हर भावों से बल्की कहा जा सकता है कि आत्मा की हर परतों को खोल कर रख देती है। हमारे परिवेश में पति द्वारा पत्नी की अवहेलना , केवल इस एक रिसते में ही नहीं हर सम्बन्धों में स्त्री ये पीड़ा झेलती है लेकिन जब वो अपने आत्मविश्वास के बल पर आगे बढ़ती है तो किसी भी पुरुष से मजबूत,निडर और बहादुर तरह से जीती हैं प्रेम चंद जी इस लिए ही प्रिय है उन के पास स्त्री की आत्मा को जानने की जो नजर है वो उन्हें साहित्य की नजर से बेशकिमती जगह पर पहुचाता है

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