तार- तार न होने पाए यह 'च‍दरिया'

By Gulzar Hussain
हां, यही तो मर्म है इस उपन्‍यास का ...झीनी झीनी चदरिया जैसी बनारसी साड़ी बीनने वालों के दिल में झांकते इस उपन्‍यास में हंसता-खिलखिलाता बनारस है ...दुख में सिमटकर जीने को मजबूर बनारस है ... जन अधिकार के लिए आवाज बुलंद करता बनारस है।

बुनकर जुलाहों के अंतहीन संघर्ष और दिलेरी को पन्‍ने पर उकेरता अब्‍दुल बिस्‍मिल्‍लाह का उपन्‍यास 'झीनी झीनी बीनी च‍दरिया' बनारस की ऐसी तस्‍वीर खींचता है, जिसमें पूरा भारत दिखाई देता है।

मेहनती बुनकर मतीन और अलीमुन का एक बेटा है इकबाल। वह उनकी आंखों का तारा है। उसे मतीन पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाने का सपना देखता है, लेकिन एक मामूली बुनकर आखिर कितना उड़ सकता है, जब पंख कतरने वाले अमीरुल्‍ला जैसे सामंत फन काढ़े बैठे हों।

अमीर मालिकों के शोषण के खिलाफ मतीन समाज के कई युवकों को एकजुट करता है, लेकिन अंतत: पैसेवालों के छल-कपट का शिकार हो जाता है। मतीन इस धोखे से इतना टूटता है कि बनारस की गलियां छोड़कर दूर चला जाता है। टीबी की शिकार हुई अलीमुन उसकी राह तकते-तकते पीली पड़ जाती है। ऐसे कष्‍टप्रद माहौल में पलते-बढ़ते इकबाल के मन में क्रांति की चिनगारी कौंधती है और वह शोषण के खिलाफ आंदोलन करने की ठानता है।

जब किसी बची हुई उम्‍मीद के सहारे मतीन बनारस लौटता है, तो कितना कुछ बदला हुआ मिलता है। खिलखिलाती रहने वाली रेहाना अपने पति के जुल्‍म से सूखकर कांटा हो जाती है और मर जाती है ...नजबुनिया को उसका शौहर छोड़ देता है ...इकबाल 'मजदूरों एक हो' का नारा बुलंद करने वाला युवक बन जाता है।

कहानी का चरमोत्‍कर्ष वहां है, जब बीमार अलीमुन बनारसी साड़ी बेचने जा रहे अपने बेटे इकबाल को करीब बुलाती है और साड़ी को हर्ष से देखती हुई उस पर हाथ फेरती है। मतीन के हाथों की कला को वह अपने हाथ से छूती है और मानो उसे अपने मन में समा लेना चाहती है। जिंदगी भर उसका पति मतीन बनारसी साड़ी बनाता रहा और बेचता रहा, लेकिन अलीमुन जिंदगी में एक बार भी बनारसी साड़ी नहीं पहन पाई।
इकबाल कहता है, '' अम्‍मा, अबकी इदिया पर तोरे खातिर अईसने साड़ी लिआएंने।''...लेकिन अलीमुन तो अगले ही पल आंखें मूंद लेती है और चली जाती है उन सबको छोड़कर।

मेहनतकश जुलाहों की बस्‍ती बनारस में जो लोग जान पाए हैं कि महान कवि कबीर उनकी ही जाति का था और इसी बनारस की गलियों में रहकर कपड़ा बुनता था, उनका सर गर्व से ऊंचा हो जाता है ...उनके लिए बनारस की मिट्टी दुनिया के हर इलाके से अधिक जादुई हो जाती है ...उनके लिए बनारस सा यह देश एक चदरिया है, लेकिन कुछ लोग आज इस चदरिया को तार तार करने पर तुले हैं।

ओह कबीर, आप ही आइए और अपनी झीनी-झीनी बीनी इस चदि‍रया को तार- तार होने से बचाइए ...मेहनतकश जनता को बचाइए ...अलीमुन को बचाइए...मतीन की आंखों में सपने पलने दीजिए।
- विमर्श: गुलज़ार हुसैन

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