मैला आँचल: बिन जाति वाले 'डागदर बाबू' की अमर कहानी
'मैला आंचल' मैंने अपने मित्र राजीव से मांग कर पढ़ा था और उसने मुझसे 'गोदान' पढ़ने के लिए लिया था। तब शायद हमारी मैट्रिकुलेशन की परीक्षाएं समाप्त हुईं थी। उन दिनों हमारी दोस्ती उफान पर थी। हम रोज मिलते थे और किताबों- पत्रिकाओं पर जमकर चर्चा करते थे। 'मैला आंचल' (Maila Anchal/ Phanishwar Nath 'Renu' )हाथ में आते ही मैंने सारे दूसरे काम ठप कर दिए।
सच कहूं तो 'मैला आंचल' मुझे कभी उपन्यास की तरह नहीं लगा, बल्कि एक बेलौस दोस्त के सुनाए किस्से की तरह लगा। बिहार की मिट्टी की सुगंध समेटे हर पन्ना जैसे एक नया जादू लेकर सामने आता था। डॉक्टर प्रशांत ...कमली ...बालदेव ... सब कोई जैसे अपने गांव-मोहल्ले के ही थे। जातियों में बंटे टोले और हर टोले की एक अलग ही कहानी...
...लेकिन बिहार के इस जातीय तानेबाने में उलझे डागदर बाबू प्रशांत की तो बात ही निराली थी। हर कोई उनसे नाम पूछता और फिर उसके बाद तुरंत जाति पूछ देता। अब डागदर बाबू की कोई जात पांत हो तो बताएं न...वे कहते हमारी जाति डॉक्टर है, लेकिन ऐसे कैसे बिहारियों के बीच अपनी जाति बचाए बिना कोई बचकर गुजर जाता...फिर लोग उससे पूछते बंगाली है या बिहारी ...वह कह देता हिंदुस्तानी हूं। गज्जब का डागदर था...बिना किसी जाति का उल्लेख किए वह हर जाति के टोली का प्यारा था।
शुरू में पढ़े गए उपन्यासों में से एक रहे 'मैला आंचल' की बात सबसे जुदा थी। गांव देहात की सरल भाषा थी और सत्ता में घुन की तरह पिसते सीधे-सादे लोग थे...बालदेव का वह क्रांतिकारी भाषण ...लक्ष्मी की सादगी ...सब कुछ जैसे मन में उतर गया था, लेकिन इन सबके बीच कमली की तो बात ही कुछ और थी। कमली का डागदर बाबू के लिए उद्दाम आकर्षण ...उफ्फ!
''दवा? ...दवा नहीं। मां, मैं दवा नहीं पियूंगी।''
''वाह, सूई भी नहीं और दवा भी नहीं ? ...मीठी दवा?''
सभी हंस पड़ते हैं। युवती के मुरझाए हुए लाल होंठों पर मुस्कुराहट दौड़ जाती है। आंखों की पलके जरा उठाकर मानों डॉक्टर को डांट देती है- ''हट! दवा भी कहीं मीठी होती है!''
''वाह, सूई भी नहीं और दवा भी नहीं ? ...मीठी दवा?''
सभी हंस पड़ते हैं। युवती के मुरझाए हुए लाल होंठों पर मुस्कुराहट दौड़ जाती है। आंखों की पलके जरा उठाकर मानों डॉक्टर को डांट देती है- ''हट! दवा भी कहीं मीठी होती है!''
ऐसी थी कमली और डागदर बाबू की कहानी....और ऐसे थे इसे शब्दों में समेटने वाले रेणु।
कल (4 March 1921, Bihar) इस कलम के महान चितेरे का जन्मदिन था। उन्हें नमन। सलाम!
कल (4 March 1921, Bihar) इस कलम के महान चितेरे का जन्मदिन था। उन्हें नमन। सलाम!
- गुलजार हुसैन
सलाम
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