Delhi violence: अब दोबारा न लगे कहीं ऐसी आग




अब दोबारा कहीं ऐसी आग न लगे इसके लिए पूरी तरह सतर्क रहने की जरूरत है। बिहार में चुनाव होने हैं, इसलिए वहां भड़काऊ राजनीति की शुरुआत होने की प्रबल आशंका है।
By Gulzar Hussain
दिल्‍ली (Delhi) में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में हो रहे शांतिपूर्ण आंदोलनों के बीच न जाने कहां से एक ऐसी चिनगारी निकली, जिससे हिंसा की आग फैल गई। और यह आग इस तरह फैली कि देखते ही देखते दिल्‍ली में कई जगहों पर नरसंहार में बदल गई। मॉब लिंचिंग से लेकर घरों में घुसकर हमले किए जाने लगे। दिल्‍ली में आगजनी के भयानक दृश्‍यों को देख पूरा देश कांप उठा है। यह सब इतना भयावह है कि सभी शांतिप्रिय लोगों के मुंह से एक ही वाक्‍य निकल रहा है कि अब फिर कहीं भी ऐसी आग न लगे।

दिल्‍ली जलने के पीछे की स्थिति को समझने की जरूरत है। यह समझना इसलिए जरूरी है ताकि दूसरे राज्‍य अपने चुनाव के समय सतर्क हो जाएं। यह बहुत चर्चित वाक्‍य है कि दंगे होते नहीं, कराए जाते हैं। लेकिन इसके साथ यह भी सत्‍य है कि नरसंहार कोई आम जनता का जनता पर जुल्‍म नहीं है, बल्कि वह सत्‍ता प्रेरित हिंसक खेल है। इसे आप सियासी हिंसा भी कह सकते हैं। तो यह साफ है कि दिल्‍ली विधानसभा चुनाव से पहले ही हिंसा फैलाने की पूरी तैयारी की जा चुकी थी। सीएए के पीसफुल प्रोटेस्‍ट के खिलाफ दक्षिणपंथी पार्टी खुलकर आग उगल रही थी। छोटे नेता ही नहीं, बल्कि दिग्‍गज और फायरब्रांड नेताओं की पूरी टोली धर्मांध राजनीति को बढ़ावा दे रही थी।

इसी गर्माए माहौल में पिस्‍तौल लेकर शाहीन बाग आंदोलन स्‍थल के पास दो बार फायरिंग भी की गई। स्थिति को तनावपूर्ण बनाने का खेल लगातार खेला जाता रहा। संक्षेप में कहें तो सीएए प्रोटेस्ट को सांप्रदायिक एंगल देने की पूरी राजनीति हुई, लेकिन इतना तूफान मचाने के बावजूद दक्षिणपंथी पार्टी की करारी हार हुई। हार से बौखलाए नेताओं के पास अब फिर से सांप्रदायिक राजनीति करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा।

दंगे कराने या कहिए कि नरसंहार करवाने की पूरी योजना के तहत भड़काऊ राजनीति नए जोश से शुरू की गई। दूसरी तरफ सीएए प्रोटेस्‍ट का दम भरने वाले एक कट्टर छवि वाले नेता ने भी भड़काऊ बयान दे दिया, जबकि सीएए का विरोध गैर राजनीतिक तरीके से देशभर में हो रहा है। इस बयान से भी माहौल गंदा हुआ। इधर शाहीन बाग की तरह ही सीएए विरोध के लिए दिल्‍ली में कई और जगहों पर आंदोलन शुरू हो गए।

सीएए को लेकर एक इंच भी पीछे न हटने की सियासत से भी प्रोटेस्‍ट पर असर पड़ा। सीएए विरोधी लोगों ने रास्‍ता जाम आंदोलन भी शुरू कर दिया, जिससे भड़काऊ राजनीति की तैयारी में बैठे नेताओं को एक मौका हाथ लग गया। और इस तरह चिनगारी फेंक दी गई। फायरब्रांड कहे जाने वाले दिल्ली के दक्षिणपंथी नेता ने भड़कीला बयान दिया, जिसके बाद से ही हिंसा का दौर शुरू हो गया।

यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि दिल्‍ली में सुनियोजित तरीके से नरसंहार की साजिश रची गई, जिसका अन्‍य राज्‍यों में भी प्रयोग किए जाने की आशंका है। इसलिए अब दोबारा कहीं ऐसी आग न लगे इसके लिए पूरी तरह सतर्क रहने की जरूरत है। बिहार में चुनाव होने हैं, इसलिए वहां भड़काऊ राजनीति की शुरुआत होने की प्रबल आशंका है।

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