...तो क्या गोडसे ने इसलिए की थी गांधी की हत्या?




-गुलज़ार हुसैन

जातिवाद की समस्या को लेकर बाबासाहेब आंबेडकर का महात्मा गांधी से जो संवाद था वह बेहद जरूरी और तार्किक था। तमाम असहमतियों के बावजूद यह डिस्कशन ऐसा था, जो निरंतर था। 

दरअसल, गांधी छुआछूत और जातिप्रथा की कुरीतियों के खिलाफ जोरदार आंदोलन चला रहे थे, लेकिन आंबेडकर का जातिवाद के खिलाफ आंदोलन वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए था। आंबेडकर तो जातिभेद का समूल रूप से खात्मा चाहते थे, लेकिन गांधी का तरीका कुछ और था। गांधी भी जात-पांत और छुआछूत के पूरी तरह खिलाफ थे, लेकिन वे ह्रदय परिवर्तन की बात कहते थे।

गांधी जातिवाद को फालतू अंग मानते थे। उन्होंने ‘मेरे सपनों का भारत’ में लिखा था, ‘जातपांत के बारे में मैंने बहुत बार कहा है कि आज के अर्थ में मैं जात-पांत को नहीं मानता। यह समाज का 'फालतू अंग' है और तरक्‍की के रास्‍ते में रुकावट जैसा है।’ हालांकि वर्ण व्यवस्था पर उनका तर्क बहुत फिलॉस्फिकल था और इसको लेकर उनकी आलोचना भी होती थी, लेकिन इसके बावजूद वे वर्णवाद को व्यर्थ समझते हुए इससे दूर जा रहे थे। वे वर्णवाद की एकदम अलग व्याख्या करते हुए अंतत: इसे महत्वहीन मानते थे।

हमें यह मानना पड़ेगा कि आखिरी दिनों में गांधी दरअसल आंबेडकर के विचारों के बेहद करीब जा रहे थे। दोनों में देश को बेहतर तरीके से सजाने के सपने थे, जिनमें असहमति के साथ आगे बढ़ने के लिए राह निकलती थी।

आंबेडकर भी यह मानते थे कि गांधी से बातचीत हो, लगातार संवाद बने। कई जरूरी मुद्दों पर असहमतियों की अनुगूंज के बावजूद दोनों ही नेता जातिवाद के खिलाफ अपनी पूरी ऊर्जा से कार्य कर रहे थे।

गांधी के नेतृत्व में छुआछूत के विरोध में जो आंदोलन हो रहा था, उसका व्यापक प्रभाव उत्तर भारत के लोगों पर था। जगजीवन राम जैसे कई बड़े दलित नेता गांधी के साथ खड़े थे। वहीं दूसरी ओर आंबेडकर की क्रांति व्यापक मानवतावादी फलक लिए हुए थी। महाराष्ट्र सहित उससे सटे राज्यों के लोग बड़ी संख्या में उनके साथ थे।

गांधी और आंबेडकर के बीच का जारी संवाद भी कट्टरपंथियों के लिए सिरदर्द था, क्योंकि इन दोनों नेताओं में आपसी संवाद जारी था, लेकिन आरएसएस जैसे संगठन से इन दोनों का कोई संवाद नहीं था।

मुझे यह भी लगता है कि गांधी जैसे-जैसे आंबेडकर के विचारों के करीब जा रहे थे, वैसै-वैसे गोडसे ग्रुप को यह सब बेहद खल रहा था। गोडसे ग्रुप को यह लगता था कि आंबेडकर और गांधी मिलकर वंचित जनता को सारे जरूरी अधिकार न दे दें, इसलिए अंतत: नाथूराम गोडसे ने लंबी आतंकी साजिश कर गांधी की हत्या कर दी।

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