चुनावी समर में रोहित वेमुला पर चुप्पी क्यों ?


Photo: Facbook वाल से 

viewpoint : Gulzar Hussain
विपक्षी दलों के लिए सामाजिक न्याय इस बार लोकसभा चुनाव का प्रमुख मुद्दा है, लेकिन इसके बावजूद सामाजिक न्याय के सबसे लोकप्रिय चेहरे रहे रोहित वेमुला(Rohith Vemula) के बारे में कोई भी बात नहीं कर रहा। कायदे से न केवल उसे याद किया जाना चाहिए, बल्कि सत्ता को वेमुला के साथ हुए अन्याय की याद दिलाने के लिए वेमुला के न्‍याय के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया जाना चाहिए।


दरअसल वेमुला कोई चुनावी मुद्दा तो नहीं ही है, लेकिन वंचित जनता के हक के लिए हुए हर आंदोलन का प्रतीक तो है। इस बार का चुनाव भी महज एक चुनाव ही तो नहीं है। यह संविधान और जनता के अधिकार को बचाने का एक आंदोलन भी तो है। ऐसे में रोहित वेमुला का मुद्दा एक मार्ग है, जिस पर यदि चला जाए, तो कई उपमार्गों का रास्‍ता स्‍वयं खुलता चला जाता है।

रोहित वेमुला ने जब वंचित जन के हक के लिए आवाज उठाई, तो उसकी सांस्‍थानिक हत्‍या की गई थी, जिसका आरोप सत्‍ता की ब्राह्मणवादी आक्रामकता पर लगा था। दरअसल रोहित को जिन क्रूर राजनीतिक हाथों ने मारा था, उसी ने अखलाक से लेकर गौरी लंकेश तक का खून भी पीया है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि सभी को न्याय दिलाने की राह बने। और ऐसे में वेमुला एक ऐसा नाम है, जिसके सांकेतिक नेतृत्व में इस न्याय की जंग लड़ी जा सकती है। 


कहने को तो हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र था रोहित वेमुला, लेकिन वह अपने अधिकार के लिए लड़ते हुए पूरे देश की वंचित जनता का प्रतिनिधि बन गया। खबरें तो यह छपी कि उसने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी, लेकिन हकीकत यह थी कि उसकी सांस्थानिक हत्या की गई थी। चर्चा में था कि दलित समुदाय के रोहित को उनके चार अन्य साथियों के साथ हॉस्टल से निकाल दिया गया था, लेकिन सच्चाई इससे अधिक भयावह थी। उन्हें केवल निकाला ही नहीं गया था, बल्कि उनके मुंह पर ताला भी जड़ दिया गया था।


हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने रोहित वेमुला और उनके चार साथियों को हॉस्टल से निकाल दिया था, जिसके बाद वे की रातों में खुले आसमान के नीचे सो रहे थे।  विश्वविद्यालय के हर सार्वजनिक स्थल पर इन चारों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था। मामला यह भी था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के एक सदस्य ने इन छात्रों पर मारपीट करने का आरोप लगाया था, लेकिन बाद में यह झूठा साबित हुआ था। यूनिवर्सिटी की पहली जांच में यह आरोप पूरी तरह बेबुनियाद पाया गया था। जिसने आरोप लगाया था,  उस पर हमले का कोई निशान नहीं था। यह साबित हुआ था कि रोहित वेमुला और उसके साथियों को तंग करने की यह साजिश थी।


रोहित वेमुला की आंखों में अपने देश को और बेहतर बनाने का सपना था। वह आंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन के माध्यम से अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहा था ...वह ‘मुजफ्फरनगर बाकी है’ फिल्म के प्रदर्शन पर हमला करने वाले कट्टरपंथियों के विरोध में जुलूस निकाल रहा था ...वह उस मृत्युदंड के खिलाफ बहस को जारी रखे हुए था, जिसको दुनिया के सभी सभ्य देश अपना रहे हैं ...वह हमारे देश के वंचित समुदायों के हक के लिए लड़ रहा था। लेकिन क्रूर और निर्दयी ताकतवर लोगों ने मिलकर हमारे ‘युवा हीरो’ के सपने को कुचलने का षड्यंत्र रचा।



रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या मामले में न्याय दिलाने के लिए किसी बीजेपी नेता ने आवाज नहीं उठाई। पार्टी के फायरब्रांड नेताओं का ग्रुप मुंह में टेप चिपकए बैठा रहा। दूसरी तरफ पार्टी के बड़े कद के नेताओं ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी बनाए रखी। बीजेपी का रिमोट कंट्रोल माने जाने वाले संगठन ने तो रोहित को ही बदनाम करने में अपनी ताकत लगाए रखी। विद्यार्थियों के कल्याण करने के नाम पर बने एबीवीपी, जिसके सुशील कुमार जो रोहित सुसाइड केस के मुख्य आरोपियों में शामिल है, ने कुतर्कों के सहारे रोहित को राष्ट्रविरोधी ही साबित करना चाहा। तो इन सबसे क्या लगता है? क्या वंचित जातियों के प्रति यह गहरा षड्यंत्र नहीं है? क्या बीजेपी में ऐसा कोई न्यायप्रिय नेता नहीं है, जो आगे बढ़कर कहे कि रोहित के खिलाफ साजिश रचने वालों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए?


बहुत कम लोग यह जानते हैं कि रोहित की 'सांस्थानिक हत्या' मामले में सामने आए छह में से पांच पत्र स्मृति ईरानी की तत्‍कालीन एचआरडी मिनिस्ट्री से हैदराबाद यूनिवर्सिटी को लिखे गए थे। इस देश को बेहतर बनाने के लिए आवाज बुलंद करने वाले होनहार दलित छात्र रोहित वेमुला और उसके साथियों ने आखिर ऐसा क्या कर दिया कि उन्हें निष्कासित करने के लिए सत्ता इतनी बेचैन थी? स्मृति ईरानी ने कहा था कि रोहित वेमुला की सुसाइड के बाद कोई डॉक्टर नहीं पहुंचा था, जबकि डॉक्टर खुद कह रही है कि मैं वहां थी। और तो और रोहित वेमुला को लेकर स्मृति ईरानी के भाषण के तुरंत बाद पीएम ने ‘सत्यमेव जयते' लिख कर ट्वीट कर दिया था।

इतना तो साफ है कि रोहित वेमुला का नाम भाजपा नहीं लेगी, लेकिन सवाल यह है कि विपक्षी दल क्‍यों नहीं उसके न्‍याय को लेकर आवाज उठा रहे हैं। चुनावी मौसम में रोहित वेमुला के नाम से सत्‍ताधारी नेता कांप जाते क्‍योंकि उन्‍हें वेमुला के साथ- साथ पिछले पांच सालों में हुए हर अत्‍याचार की प्रतिध्‍वनि सुनाई पड़ती।




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