मेरी तीन कविताएँ

गुलज़ार हुसैन 


पुकार
(Drawing: Gulzar Hussain )
चुनौतियों से भरे इस समय में 
उबड़ -खाबड़ पथरीली राहों पर चलते हुए 
जब कोई भी किसी को नहीं बुलाता
तब ऐसे में बुलाना चाहता हूँ मैं तुम्हें
हरी घास से भरी पगडंडी
विषधर सांप में बदल गई है अचानक 
और उस पर चलने के अलावा
कोई चारा भी नहीं है 
और उसके डंसने का डर भी है साथ- साथ
तब ऐसे समय में गुनगुनाना चाहता हूँ 
कोई गीत तुम्हारे साथ
जब फूल -फल देने वाले पेड़ों 
से गोले -बारूद निकालने के लिए 
की जा रही हो सियासत 
और इस सियासत से नजरें चुरा कर 
तुम्हें फूल भेजना मानी जाए सबसे बड़ी कायरता 
तब ऐसे समय में मैं गुलदस्ता लिए 
करना चाहता हूँ तुम्हारा इंतज़ार
ऐसे खतरनाक समय में 
जब जेब में चाकू रखना कोई अपराध नहीं हो 
और लोग एक -दूसरे से डरते हुए रास्ते बदलते हों
जब हर तरफ माचिस की बिक्री बढ़ गई हो
और बस्तियों में आग लगने की आशंका 
सबसे अधिक हो 
तब ऐसे समय में तुम्हें एक बाल्टी पानी लेकर आने के लिए कहना चाहता हूँ
तुम्हीं कहोइस तरह मैंने पहले कब पुकारा है तुम्हें ?
( 'युद्धरत आम आदमी ' में प्रकाशित )
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उस रात

वह उस रात को जिन्दा था 
जिस रात मोहल्ले के घरों को जलाया जा रहा था
लोगों को घरों से खींच कर 
उनके पेट में चाकू घुसेड़ा जा रहा था 
नाबालिग लड़कियों से
बलात्कार किया जा रहा था
और पुस्तक पढ़ते हुए छात्रों को
गन से निशाना बनाया जा रहा था
वह उस रात मुंह बंद किएभागते- छुपते हुए
जिन्दा बचा रह गया था
इसलिए दिन निकलते ही वह मर गया...
( 'वंचित जनता' में प्रकाशित  )
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खतरनाक दौर के युवा
हम उस दौर के युवा हैं 
जिस दौर में कुपोषित बच्चों को गोद में लिए 
सरकारी अस्पतालों के बाहर खड़ी स्त्रियां
सबसे अधिक अप्रत्याशित खतरे से घिरी हैं 
और टीवी पर झाड़ू की प्रदर्शनी दिखाई जा रही है
जिस दौर में दिन दहाड़े एक ही दलित परिवार के सभी सदस्यों के अंग- प्रत्यंग काट दिए जा रहे हैं 
सरे राह युवतियों को निर्वस्त्र कर
गली-गली घुमाया जा रहा है 
नरसंहारों के बाद डरे- सहमे समुदायों को खुलेआम
विदेश भगा देने की धमकी देने वालों को उच्च -निर्णायक कुर्सियों पर बैठाया जा रहा है
...और दूसरी तरफ 
टीवी पर इस उभरते ताकतवर देश के प्रतिनिधि झूम-झूम कर नाच - गा रहे हैं 
'
सामूहिक सेल्फ़ी सभाओंऔर खर्चीली शादियों की लाइव कवरेज हो रही है
क्या हम सचमुच सबसे खतरनाक दौर के युवा हैं?
( 'युद्धरत आम आदमी ' में प्रकाशित )

Comments

  1. तीनों कविताएं बेहद ही गजज्ब की लिखी हैं गुलज़ार। हमेशा ऐसे ही आत्मिकता से लिखते रहे।

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