आइए, 'हत्यारे अंधविश्वास' का बहिष्कार करें

याद रखिएआपका छोटा सा दिखने वाला अंधविश्वास (superstition) भी मानवता को खतरे में डालता है। नजर लगने के अवैज्ञानिक तथ्य को मानने वाला व्यक्ति किसी महिला की डायन के नाम पर हुई हत्या का मास्टरमाइंड हो सकता है। 'नजर लगनेसे पीड़ित लोगों को नजर उतारने की नहींबल्कि अपने नजरिये का इलाज कराने की जरूरत है।
BY Gulzar Hussain
एक मजहब का उपदेशक आता है और कहता है - मां के पैरों के नीचे जन्नत है। दूसरे धर्म का प्रवचन देने वाला आता है और कहता है- बूढे माता-पिता का दिल दुखाने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। तीसरे धर्म का प्रचारक आता है और कहता है - मां की सेवा करने सेे परमेश्‍वर प्रसन्न होते हैं।...लेकिन इतनी महान बातें कहने वाले इन सभी धर्म प्रचारकों को पिछले एक दशक में डायन के नाम पर देश की माताओं’ की हुई हत्याएं क्यों नहीं दिखाई देतीये कभी भी अपने प्रवचन कार्यक्रम में ये क्यों नहीं कहते कि डायनचुड़ैल का कोई वजूद नहीं है और इसके नाम पर किसी मां’ की जान लेने का अधिकार किसी को नहीं है?
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निस्संदेहडायन के वजूद पर विश्वास करने वाला व्यक्ति सबसे अधिक खतरनाक होता हैक्योंकि जब कभी भी वह बीमार होता है तो वह इस संदेह में घिर जाता है कि किसी पड़ोसी महिला ने ही उस पर टोना-टोटका (Black magic) कर दिया है। इसके बाद वह किसी महिला को डायन कहकर उसके खिलाफ मोहल्ले भर में में झूठी जादुई बातें फैलाना शुरू कर देता है। 
इस तरह डायन के होने पर यकीन करने वाला व्यक्ति किसी महिला की प्रताड़ना और हत्या के लिए भी जिम्मेदार होता है।


नियमित मंदिर और मस्जिद जाने वाले साथियों से पूछना चाहता हूँ कि क्या धर्मस्थलों में प्रवचन देने वालों ने कभी कहा है कि डायनचुड़ैलपिशाचभूत प्रेत का कोई वजूद नहीं होता है? ...क्या इन प्रचारकों ने कभी कहा है कि डायन जैसा कुछ भी नहीं होता इसलिए किसी औरत को डायन कहना पाप या हराम है ?
अगर धर्म प्रचारकों और प्रवचन देने वालों ने ऐसा नहीं कहातो क्या उनसे यह सवाल नहीं किया जा सकता है कि जब आप लोगों की नैतिकतापाप -पुण्यलोक -परलोक की इतनी चिंता करते हैंतो देश भर में पिछले साल 160 से अधिक महिलाओं की डायन के नाम पर हुई हत्याओं के बारे में कुछ क्यों नहीं बोलते?
... 
क्या प्रचारकों से पूछा नहीं जाना चाहिए कि पिछले दिनों झारखंड में पांच महिलाओं की डायन कहकर हत्या किये जाने के बाद उन्होंने यह फतवा या घोषणा क्यों नहीं की है कि डायन या चुड़ैल के वजूद पर यकीन करने वाले कभी ईश्वर-खुदा को नहीं पा सकते?
मोहल्लोंगाँवों और कस्बों में केवल पांच सौ रुपए खर्च कर के एक ऐसे जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाता जहां लोगों को बताया जा सके कि डायनचुड़ैल या भूत-प्रेत जैसा कुछ भी नहीं होता है। 

जिन मोहल्लों में लाखों रुपए शादी समारोहों में फूंक दिए जाते हैं ...जिन गाँवों में लाखों रुपए मजहबी-धार्मिक अनुष्ठानों पर खर्च कर दिए जाते हैं ...जिन कस्बों में लाखों रुपए पानी की तरह बहाकर राजनीतिक सभा में हजारों लोगों की भीड़ केवल वोट पाने के लिए जुटाई जाती है...उन्हीं मोहल्लोंगाँवों और कस्बों में केवल पांच सौ रुपए खर्च कर के एक ऐसे जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाता जहां लोगों को बताया जा सके कि डायनचुड़ैल या भूत-प्रेत जैसा कुछ भी नहीं होता है। ...जहां लोगों को बताया जा सके कि डायन होने पर विश्वास करने वाले भी इसके नाम पर होने वाली हत्याओं में सह अपराधी हैं।
यदि आप किसी के 'नजर लग जानेजैसे टोने टोटके पर यकीन करते हैं और उससे बचने के लिए तांत्रिकों -बाबाओं से ताबीजभस्म आदि का सहारा लेते हैंतो इसका मतलब है कि आप किसी महिला को डायन साबित करने पर तुले हैं।

जिस बीमारी का कोई वजूद ही नहीं है तो उसके डॉक्टर क्यों होने चाहिएतो फिर डायन को चिन्हित करने-पकड़ने और भूत-प्रेत उतारने वाले तांत्रिक-बाबा हर जगह क्यों पाए जाते हैं हम जानते हैं कि न तो कोई महिला डायन होती हैं और न ही भूत प्रेततो फिर उसे प्रचारित -प्रसारित करनेझाड़ फूँक करनेताबीज भस्म देने वाले पाखंडी तांत्रिकों-बाबाओं को हम क्यों झेलते हैंआइएइन धूर्त-पाखंडी तांत्रिकों-बाबाओं का सामाजिक बहिष्कार करें और जो लोग इनका समर्थन करे उन अंधविश्वासियों का भी बहिष्कार करें ।

कुछ रसूखदार धनपति लोग अपने साथ धर्मगुरुओं को मिलाकर तांत्रिकों -बाबाओं के सहारे पूरे गांव में डायन और चुड़ैल होने की अफवाह फैलाते हैं और पहले से तय योजना के अनुसार महिलाओं को चिन्हित करवाकर उन्हें यातना देने लगते हैं।
डायन के नाम पर गांवोंदेहातों और कस्बों में गरीब औरतों के विरुद्ध जारी नरसंहार’ को केवल अनपढ़ और निर्धन लोगों से जुड़ा मुद्दा मानना सबसे बड़ी भूल हो सकती है। दरअसल ये हत्याएं पढ़े -लिखे और धनाढ्य लोगों के एक बर्बर-पुरुषवादी समूह द्वारा निर्देशित-संचालित होती रहती हैं। किसी गरीब महिला की चल-अचल संपत्ति लूटनेअपना वर्चस्व बनाए रखने या बदला लेने के लिए ही यह सब खूनी खेल होता है। 

इनमें से कई महिलाएं तो सामाजिक और धार्मिक बॉयकाट का दंश झेलकर पागल हो जाती हैं या रोग का शिकार होकर असमय ही मर जाती हैं। कोई बची रह जाएतो ये सफेदपोश हत्यारे मिलकर उनकी जान ले लेते हैं।


जरा सोचिए कि झाड़-फूंक करने वाले तांत्रिकों-बाबाओं को गांवों में घूमने और महिलाओं को चिन्हित करने की छूट कौन देता हैगरीब व्यक्ति तो मेहनत मजदूरी में लगा रहता हैतो वह ऐसा षड्यंत्र कैसे रच सकता हैदरअसल कुछ रसूखदार धनपति लोग अपने साथ धर्मगुरुओं को मिलाकर तांत्रिकों -बाबाओं के सहारे पूरे गांव में डायन और चुड़ैल होने की अफवाह फैलाते हैं और पहले से तय योजना के अनुसार महिलाओं को चिन्हित करवाकर उन्हें यातना देने लगते हैं। इनमें से कई महिलाएं तो सामाजिक और धार्मिक बॉयकाट का दंश झेलकर पागल हो जाती हैं या रोग का शिकार होकर असमय ही मर जाती हैं। कोई बची रह जाएतो ये सफेदपोश हत्यारे मिलकर उनकी जान ले लेते हैं।


यदि आप किसी के 'नजर लग जानेजैसे टोने टोटके पर यकीन करते हैं और उससे बचने के लिए तांत्रिकों -बाबाओं से ताबीजभस्म आदि का सहारा लेते हैंतो इसका मतलब है कि आप किसी महिला को डायन साबित करने पर तुले हैं। जो व्यक्ति नजर लग जाने से बचने के लिए तरह तरह की नुस्खे आजमाता हैवह व्यक्ति अपने पड़ोस की महिलाओं पर डायन होने का संदेह भी करता है और उनकी बदनामी का भी जिम्मेदार होता है। 


याद रखिएआपका छोटा सा दिखने वाला अंधविश्वास (superstition) भी मानवता को खतरे में डालता है। नजर लगने के अवैज्ञानिक तथ्य को मानने वाला व्यक्ति किसी महिला की डायन के नाम पर हुई हत्या का मास्टरमाइंड हो सकता है। 'नजर लगनेसे पीड़ित लोगों को नजर उतारने की नहींबल्कि अपने नजरिये का इलाज कराने की जरूरत है।


गाँवों- कस्बों में बनी मंदिर-मस्जिद की कमेटियां जब अपने इलाके के लोगों के हर मजहबी- धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने और चंदा लेने को लेकर सख्त नजर रख सकती हैतो उसी इलाके के लोगों के बीच डायन के नाम पर फ़ैल रहे 'हत्यारे अन्धविश्वासको रोकने के लिए जरूरी घोषणाएं क्यों नहीं कर सकती?


जिस बिहार में डायन के नाम पर गरीब महिलाओं को सबसे अधिक यातना दी जाती हैवहां की अधिकांश राजनीतिक पार्टियां अंधविश्वास के आगे नतमस्तक होकर आगे बढ़ती हैंनहीं तो जिस तरह चुनाव के समय घर-घर पर्चियां बंटवाकर वे वोट मांगती हैंउसी तरह डायन-प्रथा के विरोध में पर्चियां क्यों नहीं बंटवाती?


'डायनके होने पर विश्वास करने वालेकिसी महिला को डायन के रूप में फिल्मोंटेली धारावाहिकों और लुगदी उपन्यासों में प्रस्तुत करने वाले और 'डायनके वजूद को नहीं नकारने वाले धर्म गुरु भी उतने ही बड़े अपराधी हैंजितने डायन के नाम पर हत्याएं करने वाले।


जिस उत्तर भारत में डायन के नाम पर लगातार हत्याएं हो रही होउस उत्तर भारत के किसी धर्म-मजहब के ठेकेदारों को आपने कभी यह बोलते सुना है कि डायनचुड़ैल या भूत-प्रेत जैसा कुछ भी नहीं होता?


आप बहुत भले इंसान हैं। आप वाट्सएप-एफबी पर 'माँ की सेवा करेंऔर 'बुजुर्ग माता- पिता की इज़्ज़त करेंजैसे मैसेज खूब शेयर करते हैंलेकिन जरा सोचिएडायन के नाम पर जिन महिलाओं की हत्या की जा रही हैवह भी तो किसी की माँ होती है।
...तो फिर आप वाट्सऐप- एफबी पर यह क्यों नहीं फैलाते -
...
कि डायन जैसा कुछ नहीं होता और यह अंधविश्वास है। 
...
कि किसी महिला को डायन कहना- मानना अपराध है।
...
कि जब भी कोई डायन के वजूद पर विश्वास करता है तो वह इसके नाम पर होने वाली हर हत्या में भी शामिल होता है।
आइएसोशल मीडिया के सहारे इस 'हत्यारे अंधविश्वासका बहिष्कार करें।
(पिछले दिनों (2015 में ) झारखंड में डायन के नाम पर हुई पांच महिलाओं की हत्या के विरोध में लिखे मेरे फेसबुक पोस्ट)  

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