ओ भगत सिंह, अचानक तो नहीं बदलने लगी है दुनिया : कविता
ओ भगत सिंह, अचानक तो नहीं बदलने लगी है दुनिया यह अचानक तो नहीं हुआ कि बदल गया इतना सब कुछ बदल गया रंग धरती और आकाश का पहाड़ों की चोटियों पर जमी बर्फ पिघल कर बहने लगी नदी-तालाबों का पानी बगुले सा चमकने लगा यह अचानक तो नहीं हुआ कि तेज हवा का झोंका आया और उड़ गए सड़े-गले पत्ते दूर चली गई दीवारों के कोनों में जमी धूल और राख गायब हो गई अलगनी पर पसरीं मैली चादरें यह अचानक तो नहीं हुआ कि तेज बारिश से भर गए बड़े-बड़े गड्ढे टूटने लगे तटबंध ढहने लगे आडंबरों के पवित्र महल गिरने लगीं साम्राज्य की अट्टालिकाएं कीचड़ में सनने लगा तिजोरियों में भरा धन नालों में बहने लगा त्वचा का गोरा रंग और घनी मूंछों का अभिमान सच, यह सब अचानक नहीं हुआ भगत सिंह जब तुमने लिखना और बोलना शुरू किया तब बदलने लगी दुनिया तुम्हें जानने के बाद तेज होने लगी इंकलाबी तलवार की धार भारी भरकम बूटों के तले रौंदी जाती गरदन की नसों में दौड़ने लगा गर्म लहू निस्तेज आँखों में भर गए सपने भींच गई खुली हुई मुट्ठियाँ खुल गए सिले हुए होंठ और मुख से निकल पड़ा: इन्कलाब जिंदाबाद! --- गुलज़ार हुसैन